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Showing posts from April, 2024

खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ

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खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ  एक बार आफन्ती के एक कंजूस दोस्त ने भोजन के लिए उसे अपने घर बुलाने का पाखण्ड रचा। आफन्ती निश्चित समय पर उसके घर जा पहुंचा। दोस्त अपने मकान की दूसरी मंजिल की खिड़की से झांक रहा था। आफन्ती को देखते ही वह पत्नी के कान में कुछ फुस- फुसाया। पत्नी फाटक पर जाकर बोली: "क्या आप ही आफन्ती हैं? बच्चों के अब्बा को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा है। आप किसी दूसरे दिन तशरीफ लाइए!" "ठीक है, मैं जाता हूं।" आफन्ती बोला। "मगर एक बात उनसे जरूर कह देना। आइन्दा वे जब कभी बाहर जाएं, अपना सिर खिड़की पर न लटका जाएं।" अनोखा नुस्खा आफन्ती एक अच्छा हकीम भी था। एक बार चर्बी के बोझ से लदा एक सेठ उसके पास आया और खींसें निकालकर बोला: "आफन्ती, मैं अपने मोटापे से बड़ा परेशान हूं। क्या तुम मेरी इस बीमारी का इलाज कर सकते हो?" आफन्ती ने सेठ को ऊपर से नीचे तक बड़े गौर से देखा और नुस्खा लिखकर उसके हाथ में थमा दिया। नुस्खे में लिखा थाः "आप पन्द्रह दिन के अन्दर मर जाएंगे।" यह अनोखा नुस्खा पढ़कर सेठ के पैरों तले की जमीन खिसकने लगी। वह जैसे-तैसे घर

जहर का कटोरा आफनती की कहानी

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जहर का कटोरा आफनती की कहानी  उन दिनों आफन्ती एक काजी के घर नौकरी करता था। एक दिन एक सेठ ने काजी को एक कटोरा शहद भेंट किया। काजी ने अभी-अभी खाना खाया था और उसे किसी जरूरी काम से बाहर जाना था। उसने आफन्ती को बुलाकर हुक्म दियाः "आफन्ती, मैं बाहर जा रहा हूं। इस कटोरे में जहर है, जिसे अभी-अभी सेठ जी दे गए हैं। इसे सम्भालकर रख देना।" यह कहने के बाद काजी घोड़े पर सवार हो गया और बाहर चला गया। काजी के बाहर जाते ही आफन्ती ने एक नान निकाला और उसे शहद में डुबाकर बड़े इत्मीनान से खाने लगा। कुछ ही क्षणों में वह सारा शहद चट कर गया। इसके बाद उसने काजी के घर के सारे बर्तन-भांडे तोड़ डाले। काजी घर लौटा, तो देखा शहद का कटोरा खाली पड़ा है। उसने पूछा: "कटोरे का जहर कहां है, आफन्ती?" आफन्ती ने बड़ी नाटकीयता के साथ कांपती जबान में जवाब दियाः "मालिक, मुझसे आज एक भारी गलती हो गई है। मेरी लापरवाही से आपके घर के सारे बर्तन-भांडे टूट गए हैं। मैंने सोचा, आप मुझे जरूर फटकार लगाएंगे और मुझसे मुआवजा मांगेंगे। मैं एक गरीब आदमी हूं। इतना मुआवजा देना मेरे बूते के बाहर है। इसलिए मैंने आत्महत्या क

उड़ने वाला घोड़ा देसी कहानियाँ

 बादशाह का चेहरा जब आफन्ती बादशाह का अंगरक्षक था, तो एक दिन बादशाह ने भौंहें सिकोड़कर उससे कहाः "कल मैंने आईने में अपनी सूरत देखी तो पता चला कि मैं वाकई बेहद बदसूरत हूं। अब मैंने फैसला कर लिया है कि आयन्दा अपना चेहरा आईने में कभी नहीं देखूंगा!" "जहांपनाहः" आफन्ती तुरन्त बोला, "आप अपनी सूरत सिर्फ एक बार देखकर ही उससे घृणा करने लगे हैं। लेकिन मुझे रोजाना कम से कम दस-बीस बार आपकी सूरत देखनी पड़ती है। आप सोच भी नहीं सकते कि मेरा क्या हाल होता है!" उड़ने वाला घोड़ा देसी कहानियाँ बादशाह ने आफन्ती से पूछाः "आफन्ती, बहुत दिनों से मेरी इच्छा है कि आकाश में उड़कर पूरी दुनिया की सैर करूं। मैं दुनिया के पहाड़ों, नदियों, शहरों, गांवों, जंगलों और मैदानों को देखकर अपना ज्ञान बढ़ाना चाहता हूं। यह इच्छा पूरी करने के लिए कोई अच्छी तरकीब बता सकते हो?" "जरूर बता सकता हूं. जहांपनाह!" आफन्ती बुलन्द आवाज में बोला। यह सुनकर बादशाह की बांछें खिल गई और वह बोला: "तुम सचमुच बड़े अकलमंद आदमी हो! बताओ, वह कौन-सी तरकीब है?" "आकाश में पहुंचना कोई मुश्कि

मूर्ख बादशाह और आफनती

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 दुआ बनाम बददुआ उन दिनों आफन्ती एक मोची का काम करता था। एक मौलवी उसके पास आया और बोला: "आफन्ती भाई, मेरे जूते का तल्ला उखड़ गया है। जरा इसकी मरम्मत तो कर दो। मैं खुदा से तुम्हारे लिए दुआ मांगूंगा।" "माफ कीजिए, मौलवी साहब, मेरे पास फुरसत नहीं है।" आफन्ती सिर उठाए बिना काम जारी रखता हुआ बोला। "आप अपना जूता किसी दूसरे मोची से ठीक क्यों नहीं करवा लेते।" "यह कैसे हो सकता है?" मौलवी ने कड़ी आवाज में कहा। "मेरा काम तुम्हें अभी करना होगा। वरना मैं खुदा से तुम्हारे लिए बददुआ मांगूंगा। तब तुम्हें पछताना पड़ेगा।" "वाह!" आफन्ती हाथ का काम रोककर बोला, "अगर आपकी दुआ वाकई इतनी कारगर है, तो आपने खुदा से यह दुआ क्यों नहीं मांगी कि आपका जूता कभी न टूटे?" मूर्ख बादशाह और आफनती  नया बादशाह निरा मूर्ख और अनाड़ी था। विदेशी राजदूतों के साथ भेंट के समय भी ऊलजलूल बातें कर बैठता था। सुनकर लोग अक्सर ठहाके मारने लगते थे। इससे देश की साख धूल में मिलती जा रही थी। मंत्रियों की सिफारिश पर बादशाह ने अक्लमंद आफन्ती को अपना सलाहकार बना लिया। आफन्ती ने

पहलवान की ताकत

 पहलवान की ताकत एक बार एक तथाकथित पहलवान आफन्ती के घर गया और बोला: "आफन्ती, तुम अक्ल में बड़े हो और मैं ताकत में। अगर हम दोनों दोस्त बन जाएं, तो कैसा रहेगा?" आफन्ती ने आगन्तुक को गौर से देखा और उससे पूछाः "पर यह तो बताओ, तुम्हारे अन्दर कितनी ताकत है?" "मैं 500 किलोग्राम वजन वाली चट्टान को सिर्फ एक हाथ से आसानी से उठा सकता हूं और उसे नगर की चारदीवारी के बाहर फेंक सकता हूं." पहलवान डींग मारता हुआ बोला। "ज्यादा शेखी न बघारो," आफन्ती ने उसकी ओर घूरते हुए कहा। "पहले मैं तुम्हारी परीक्षा लेता हूं।" यह कहकर वह पहलवान को आंगन में ले गया। "ठीक है," पहलवान अकड़कर बोला, "मैं हर परीक्षा में खरा उतरूंगा।" "अरे यार, ज्यादा डींग न मारो। जरा विनम्र रहो!" यह कहते हुए आफन्ती ने अपनी जेब से एक रेशमी रूमाल निकाला और उसके हाथ में थमाते हुए कहा, "इसका वजन दस ग्राम से भी कम है। जरा इसे आंगन की दीवार के बाहर फेंक कर तो दिखाओ।" "यह भी कोई बड़ी बात है?" पहलवान मुस्कराता हुआ बोला, "आफन्ती, क्या तुम मुझे इतना

कलहंस का बंटवारा कहानी

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 कलहंस का बंटवारा कहानी  एक बार काजी एक पका पकाया कलहंस बादशाह को भेंट करने आया। उसने कहा: "बादशाह सलामत, आज आपका जन्मदिन है। मैं जानता हूं कि आपको कलहंस का मांस सबसे ज्यादा पसन्द है। इसलिए यह कलहंस खुद पकाकर आपको और आपके परिवार के लोगों को खिलाने लाया हूं।" बादशाह की दो शहजादियां कलहंस की टांगें और उसके दो शहजादे कलहंस का सीना खाने के लिए मचलने लगे। बादशाह और बेगम को कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने राजमहल के सेवक आफन्ती को बुलाया और कलहंस का बंटवारा करने को कहा। आफन्ती ने चाकू से कलहंस का सिर काटकर बड़े अदब के साथ बादशाह को देते हुए कहा: "जहांपनाह, आप हमारे मुल्क के सरताज हैं। आपको सिर खाना चाहिए। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप हमेशा हमारे मुल्क के सरताज बने रहें।" इसके बाद उसने कलहंस की गर्दन काटकर बेगम को पेश की और बोला: "कहावत है, अगर शौहर की उपमा सिर से दी जाए, तो बेगम की उपमा गर्दन से दी जानी चाहिए। इसलिए आपको यह गर्दन दे रहा हूं। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप बादशाह सलामत से कभी न बिछुड़ें।" फिर उसने कलहंस का एक-एक डैना दोनों शहजादियों को दे दिया और कहा: &q

सूझबूझ वाला सेवक आफनती के किस्से

 सूझबूझ वाला सेवक आफनती के किस्से  बादशाह को पता चला कि आफन्ती एक होशियार, फुर्तीला और सूझबूझ वाला आदमी है। इसलिए उसे राजमहल में सेवक नियुक्त कर दिया। बादशाह ने उससे कहाः "आफन्ती, जब कभी तुम्हें कोई काम दिया जाए, तो उससे सम्बन्धित बाकी सब काम तुम्हें एक साथ पूरे कर लेने चाहिए।" शुरू-शुरू में आफन्ती ने बहुत से काम बखूबी पूरे किए। बादशाह बड़ा खुश हुआ। उसने मंत्रियों के सामने आफन्ती की तारीफ के पुल बांध दिए और उनसे कहा कि वे आफन्ती की मिसाल पर चलें। एक दिन यकायक बादशाह गम्भीर रूप से बीमार हो गया। वह न तो खाना खा सकता था और न एक भी बूंद पानी पी सकता था। मंत्रियों ने आफन्ती को बुलाया। बादशाह कराहता हुआ बोला: "आफन्ती, जाओ, जल्दी से किसी अच्छे हकीम को बुला लाओ। जरा भी देर न करना।" "आप बिल्कुल बेफिक्र रहें, जहांपनाह!" आफन्ती बोला, "मैं इससे सम्बन्धित सभी काम एक साथ पूरे करके जल्दी ही लौट आऊंगा।" आफन्ती ने राजधानी में जगह-जगह पूछताछ करने के बाद बादशाह का इलाज करने के लिए एक हकीम चुन लिया। फिर मस्जिद में जाकर कुरान शरीफ पढ़ने के लिए एक मौलवी बुला लाया। साथ

आंखों की भूख हिंदी कहानियाँ

 आंखों की भूख हिंदी कहानियाँ  गांव में एक बूढ़े सेठ को मरे कई दिन हो चुके थे। मगर उसकी दोनों आंखें खुली थीं। इमाम ने उसके लिए कुरान शरीफ की आयतें पढ़ीं और बार-बार फातिहा कही। फिर भी मृतक की आंखें बन्द नहीं हुई। लाचार होकर उसके घरवालों को आफन्ती को बुलाना पड़ा। "इनके लिए फातिहा कहना बेकार है। यह समस्या मुझे अपने तरीके से हल करनी होगी!" आफन्ती ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा। "फौरन एक प्लेट पुलाव लाओ और इन्हें खिला दो। इनकी आंखें जरूर बन्द हो जाएंगी!" "तुम पागल हो गए हो क्या, आफन्ती?" इमाम बौखलाकर बोला। उसकी भौहें तन गई और दाढ़ी कांपने लगी। वह जोर से चिल्लाया, "जब आदमी की जान ही न रहे, तो वह खाना कैसे खा सकता है?" "आफन्ती, हम लोग दुख के सागर में डूबे हुए हैं और तुम्हें मजाक सूझ रहा है।" सेठ की पत्नी ने शिकायत के स्वर में कहा। "सेठ जी को ज्यादा पुलाव खाने की वजह से ही तो प्राण त्यागने पड़े हैं!" "तब तो मेरी बात बिल्कुल ठीक है!" आफन्ती भौंहें सिकोड़ कर बोला। "कहावत है, लालची आदमी के पेट की भूख बुझ सकती है, पर आंखों क

शोरबे के शोरबे का शोरबा

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 शोरबे के शोरबे का शोरबा आफन्ती शिकार खेलने गया तो उसे एक जंगली बकरी मिली। वह उसे मारकर घर ले गया। पत्नी ने बकरी का मांस एक देगची में पकाया। आफन्ती ने अपने कुछ जिगरी दोस्तों को दावत दी और सबने मिलकर जंगली बकरी का मांस खाया। दूसरे दिन कुछ आवारा नौजवान आफन्ती के घर आ पहुंचे और बोले: "आफन्ती भाई, हम तुम्हारे दोस्त के दोस्त हैं। सुना है तुम एक जंगली बकरी मारकर लाए हो। हमें नहीं खिलाओगे?" "बहुत अच्छा, आओ बैठो!" आफन्ती ने बकरी की बचीखुची हड्डियों को देगची में डालकर उबाल लिया और हरेक को एक-एक कटोरा शोरबा थमाकर बोलाः "लो पियो, यह गरमागरम शोरबा पियो।" "यह किस चीज का शोरबा है, आफन्ती?" उन्होंने पूछा। "तुम लोग मेरे दोस्त के दोस्त हो. इसलिए मैं तुम्हें बकरी के मांस के शोरबे का शोरबा पिला रहा हूं।" आफन्ती ने उत्तर दिया। आवारा नौजवानों को एक-एक कटोरा शोरबा पीकर अपनी राह लेनी पड़ी। तीसरे दिन, दूर से कुछ घुड़सवार अजनबी आफन्ती के पास आए और अपना परिचय स्वयं कराते हुए बोले: "आफन्ती, हम सब तुम्हारे दोस्त के दोस्त के दोस्त हैं। सुना है तुमने एक मोटी-ता

पेट के चूहे मरने के लिये जिन्दा बिल्ली निगलो

 एकमात्र इलाज आफन्ती गांव-गांव में घूमकर लोगों की बीमारियों का इलाज करता था। किसी गांव के एक सेठ ने जानबूझकर उसे परेशान करना चाहा। वह हड़बड़ाकर आफन्ती के पास पहुंचा और बोला: "आफन्ती, कल रात जब मैं गहरी नींद में सो रहा था तो अचानक एक चूहा मेरे मुंह के रास्ते पेट में चला गया। इसका क्या इलाज है?" "तुम भी कैसे बेवकूफ हो. सेठ जी।" आफन्ती ने जवाब दिया। "इसका इलाज तो बड़ा आसान है। जाओ, जल्दी से एक जिन्दा बिलली निगल लो! वह जरूर तुम्हारे पेट के चूहे को खा जाएगी। मेरे पास तुम्हारी बीमारी का दूसरा कोई इलाज नहीं।" बटुए की हिफाजत एक बार आफन्ती यात्रा कर रहा था। रात में वह एक सराय में ठहरा। इस डर से कि कहीं कोई उसके पैसे न चुरा ले, उसने सोने से पहले अपना बटुआ सिरहाने के नीचे रख लिया। आफन्ती के पास ढेर सारे पैसों से भरा बटुआ देखकर सराय-मालिक के मुंह में पानी आ गया और उसने उसे चुराने की योजना बना ली। रात को वह अनेक बार दबे पांव आफन्ती के पलंग के पास गया। पर इस डर से कि कहीं आफन्ती जागा न हो, उसने हाथ बढ़ाने का साहस नहीं किया। जब आधी रात बीत गई, तो उससे न रहा गया और उसने ध

उबले हुऐ अण्डे और चूजे

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 उबले हुऐ अण्डे और चूजे शहर का एक सेठ एक रेस्तरां चलाता था। एक बार आफन्ती ने उसके रेस्तरां में तीन उबले अण्डे खाए। जब अण्डे खा चुका तो पता चला कि वह पैसे लाना भूल गया है। उसने सेठ से माफी मांगी और उसे यकीन दिलाया कि अगली बार शहर आने पर उसके पैसे जरूर चुका देगा। बेफिक्र रहो, आफन्ती," सेठ ने कहा, "तीन अण्डों की कीमत ज्यादा नहीं है। जब फुर्सत मिले, दे जाना।" छह महीने बाद आफन्ती फिर शहर गया और सेठ के पैसे चुकाने रेस्तरां में जा पहुंचा। उसने सेठ से पूछाः "सेठ जी, पिछली बार मैंने आपके यहां तीन अण्डे खाए थे। आपको कितने पैसे दे दूं?" सेठ ने दीवार पर से एक बड़ा-सा गिनती चौखट उतारा और देर तक हिसाब लगाने के बाद बोला: "ज्यादा नहीं हैं। तीन अण्डों के लिए सिर्फ तीन सौ य्वान काफी हैं।" "क्या कहा? सेठ जी, आप बौरा तो नहीं गए हैं?" आफन्ती भौचक्का रह गया। "क्यों, क्या तुम इसे बहुत ज्यादा समझ रहे हो?" सेठ ने कहा, "अगर ये तीन अण्डे तुमने न खाए होते, तो इनसे तीन मुर्गियां पैदा होतीं। छः महीने के अन्दर एक मुर्गी कम से कम एक सौ अण्डे देती और तीन मुर्

दो गधों का बोझ और हजार बार कोसना

 दो गधों का बोझ एक बार बादशाह और प्रधान मंत्री आफन्ती को साथ लेकर जंगल में शिकार खेलने गए। सूरज अंगारे बरसा रहा था। गर्मी के मारे बादशाह और प्रधान मंत्री दोनों ने अपने कपड़े उतारकर आफन्ती के कन्धे पर लाद दिए। आफन्ती पसीने से तरबतर हो गया। ऊपर से बादशाह ने आफन्ती की हंसी उड़ाते हुए चुटकी ली: "ओह! आफन्ती, तुम्हारे कन्धों पर कम से कम एक गधे का बोझ जरूर है।" "एक नहीं दो गधों का बोझ है, जहांपनाह!" आफन्ती ने तुरन्त जवाब दिया। आफन्ती की तीरन्दाजी एक आदमी बादशाह के सामने आफन्ती की तीरन्दाजी की तारीफों के पुल बांधने लगा। यह सुनकर बादशाह ने आफन्ती को अपने साथ शिकार खेलने का निमंत्रण दिया। रास्ते में दूर से एक पेड़ दिखाई दिया। बादशाह ने आफन्ती से पेड़ को निशाना बनाकर तीर चलाने को कहा। आफन्ती ने तीर चलाया, पर वह निशाना चूक गया। बादशाह खिलखिलाकर हंस पड़ा। "इसमें हंसने की क्या बात है, जहांपनाह?" आफन्ती बोला। "यह तो मैं आपकी तीरन्दाजी की नकल कर रहा था।" यह कहकर उसने फिर एक तीर चलाया। पर वह भी निशाना चूक गया। बादशाह फिर एक बार जोर से हंस पड़ा। "इसमें हंसने

सबसे बड़ा भुक्कड़ आफनती के किस्से

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 अन्धा अफसर आफन्ती का एक दोस्त था। बचपन में दोनों लंगोटिए यार थे। बाद में वह दोस्त राजधानी में एक बड़ा अफसर बन गया। यह जानकर आफन्ती बड़ा खुश हुआ और उससे मिलने अपने दूर-दराज गांव से राजधानी जा पहुंचा। पर दोस्त को डर था कि एक गरीब किसान का दोस्त कहलाने से कहीं उसकी इज्जत धूल में न मिल जाए। इसलिए उसने आफन्ती से एक अजनबी का सा सलूक करते हुए पूछाः "तुम्हारा नाम क्या है? मुझसे क्यों मिलने आए हो?" यह सुनकर आफन्ती को बड़ा गुस्सा आया। उसने तुरन्त उत्तर दिया: "मैं नसरूद्दीन आफन्ती हूं। तुम्हारा बचपन का पक्का दोस्त। मैंने सुना है, तुम्हारी आंखें खराब हो चुकी हैं इसलिए तुम्हारी देखभाल करने आया हूं। कौन जानता था कि तुम अफसर बनने के बाद अन्धे हो जाओगे!" सबसे बड़ा भुक्कड़ एक सेठ आफन्ती की खिल्ली उड़ाना चाहता था। उसने बहुत से तरबूज खरीद लिये और आफन्ती व दूसरे दोस्तों को तरबूज खाने का न्यौता दिया। वह एक तरफ तो लोगों से बार-बार तरबूज खाने का अनुरोध करता जा रहा था, लेकिन दूसरी तरफ अपने खाए तरबूजों के छिलके चुपके से आफन्ती के सामने रखता जा रहा था। जब सब तरबूज खत्म हो गए, तो सेठ ताज्जुब

बादशाह का राशिचिन्ह किस्से कहानियाँ

 बादशाह का राशिचिन्ह एक बार बादशाह ने मांग की कि आफन्ती उसका राशिचिन्ह बताए। आफन्ती हिसाब लगाकर बोला: "जहांपनाह, आपका राशिचिन्ह कुत्ता है।" बादशाह ने बौखलाकर कहा: "मैं बादशाह हूं। मेरा राशिचिन्ह कम से कम भेड़िया तो जरूर होना चाहिए। तुम कुत्ता कैसे बता रहे हो?" आफन्ती ने उत्तर दियाः "जहांपनाह, अगर आप चाहते हैं कि मैं आपके तलवे चाटू, तो मैं आपका राशिचिन्ह हाथी भी बता सकता हूं!" साफे का दम एक बार आफन्ती अपने सिर पर एक मोटा-सा साफा पहनकर सड़क पर जा रहा था। साफा आम तौर पर सिर्फ पढ़ेलिखे लोग ही पहनते थे। उसे देखकर एक आदमी नम्रता से बोला: "जनाब आलिम-फाजिल साहब, मेहरबानी करके मेरा यह खत तो पढ़ दीजिए।" "माफ करो भाई। मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर है," आफन्ती बोला। "तकल्लुफ क्यों कर रहे हैं जनाब?" जब आप इतना बड़ा साफा पहने हुए हैं, तो यह कैसे मुमकिन है कि आप पढ़ना-लिखना न जानते हों?" यह सुनकर आफन्ती हंस पड़ा। उसने साफा उतारकर उस आदमी के सिर पर पहना दिया और बोला: "बहुत अच्छा, अगर मेरे साफे में इतना दम है कि इसे पहनकर विद्या अपन

आंख की दवा से पेट का इलाज

 ताकतवर कौन? बादशाह जानना चाहता था कि क्या उसके मुल्क में कोई ऐसा आदमी भी है जो उससे ज्यादा ताकतवर है। उसने आफन्ती को बुलाया और पूछाः "नसरूद्दीन आफन्ती, तुम मेरे मुल्क के सभी नगरों और गांवों में घूम चुके हो। बताओ, क्या मेरे मुल्क में कोई आदमी ऐसा भी है जो मुझसे ज्यादा ताकतवर हो?" "बेशक ऐसे लोग लाखों की तादाद में हैं, जहांपनाह।" आफन्ती ने झट जवाब दिया। यह सुनकर बादशाह को बड़ा अचम्भा हुआ। उसने पूछाः "वे लोग कौन हैं?" "किसान।" "कैसी बेहूदा बात कर रहे हो। मैंने तो समझा था कि तुम किसी बड़े आदमी का जिक्र कर रहे हो। हल चलाने वाले किसानों की भला क्या बिसात! आखिर वे मुझसे ज्यादा ताकतवर कैसे हो सकते हैं?" "हां जहांपनाह, किसान आपसे कहीं ज्यादा ताकतवर हैं!" आफन्ती ने उत्तर दिया। "अगर वे आपके लिए अनाज न उगाएं, तो भला आपके अन्दर ताकत कहां से आ सकती है?" आंख की दवा से पेट का इलाज एक दिन एक मरीज कराहता हुआ आफन्ती के घर आ पहुंचा। दरवाजे के अन्दर घुसते ही वह जोर से चिल्लायाः "हाय, मर गया! पेट में जोर से दर्द हो रहा है। जल्दी से क

दुम कटा घोड़ा मजेदार कहानियां

 दुआ एक दुष्ट मंत्री गम्भीर रूप से बीमार था। एक दिन आफन्ती उसके घर के सामने से गुजर रहा था। उसने देखा कि मंत्री का बेटा फाटक पर खड़ा है। आफन्ती ने बड़ी अन्यमनस्कता से पूछाः "तुम्हारे अब्बाजान की तबीयत कैसी है?" "शुक्रिया आफन्ती चाचा, आपकी दुआ से..." "मेरी दुआ से?" आफन्ती उसकी बात काटता हुआ बोला: "मेरी दुआ से तो तुम्हारे परिवार के लोगों को इस समय मातम मनाना चाहिए था।" दुमकटा घोड़ा एक बार बादशाह और आफन्ती साथ-साथ शिकार खेलने गए। रात को दोनों एक ही जगह टिके। आफन्ती की हंसी उड़ाने के इरादे से बादशाह आधी रात में चुपके से उठा और उसने आफन्ती के घोड़े के जबड़े से मांस का एक टुकड़ा काट लिया। पौ फटने पर जब आफन्ती जागा, तो उसने देखा घोड़े के जबड़े का कुछ मांस कटा हुआ है। वह फौरन समझ गया कि यह बादशाह की शरारत है। इसलिए ज्योंही बादशाह अपने घोड़े पर सवार हुआ, आफन्ती ने चुपचाप छुरी से उसके घोड़े की दुम काट दी। दोनों अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। बादशाह आफन्ती की हंसी उड़ाने के लिए उसके घोड़े के मुंह की तरफ इशारा करता हुआ खिलखिलाकर हंस पड़ा और बोला: &quo

अक्लमंदों" का सवाल कहानी

 अक्लमंदों" का सवाल एक बार कई "अक्लमंद" आदमी एक "अत्यन्त जटिल" सवाल पर बहस कर रहे थेः "अगर नदी में आग लग गई, तो मछलियां कहां जाएंगी?" लगातार पांच दिन बहस करते रहे पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए। अन्त में उन्होंने इस सवाल का उत्तर जानने के लिए सबसे ज्यादा "अक्लमंद" आदमी को आफन्ती के पास भेजा। आफन्ती ने सवाल सुनते ही फौरन जवाब दियाः "अरे यार, तुम इस मामूली से सवाल के बारे में इतने परेशान क्यों हो? अगर नदी में आग लग ही गई, तो क्या मछलियां पेड़ पर नहीं चढ़ जाएंगी?" दांवपेंचों की थैली आफन्ती की ख्याति देश-विदेश में फैल चुकी थी। पड़ोसी मुल्क के बादशाह को पता चला तो उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने मंत्रियों को बुलाकर कहा: "सुना है कि हमारे पड़ोसी मुल्क में आफन्ती नाम का एक शख्स अपने बादशाह को हमेशा उल्लू बनाता रहता है। क्या यह सच है?" "हां बादशाह सलामत, यह सच है," मंत्रियों ने जवाब दिया। "हमने सुना है, आफन्ती बड़ा अक्लमंद और आलिम-फाजिल है। उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।" "यह कैसे हो सकता है।" बादशाह बोला

खुदा का पैगाम हिंदी मजेदार कहानियां

 खुदा का पैगाम हिंदी मजेदार कहानियां आफन्ती बहुत गरीब था। उसे अक्सर खाने के लाले पड़ जाते थे। एक दिन वह बाजार गया और हांक लगाने लगाः "मैं खुदा का हरकारा हूं, खुदा का हरकारा हूं!" एक सिपाही ने उसकी हांक सुन ली और काउन्टी-मजिस्ट्रेट के पास रिपोर्ट कर दी। मजिस्ट्रेट ने आफन्ती को बुलाने के लिए फौरन आदमी भेज दिया। जब आफन्ती को उसके सामने पेश किया गया, तो उसने पूछाः "अगर तुम खुदा के हरकारे हो, तो यह बताओ कि खुदा ने मेरे लिए क्या पैगाम भेजा है?" "खुदा ने आपके लिए बहुत अच्छा पैगाम भेजा है।" आफन्ती बोला। "मगर पहले मेरे लिए कुछ खाना मंगवा दीजिए। खाना खाकर इतमीनान से बता दूंगा।" मजिस्ट्रेट खुदा का पैगाम सुनने के लिए बेताब था। इसलिए उसने फौरन अपने नौकर-चाकरों को अच्छे-अच्छे पकवान लाने का हुक्म दिया। आफन्ती ने हचक कर खाया। जब पेट भर गया तो धीरे से बोला: "खुदा ने अपने पैगाम में कहा है: आफन्ती, मजिस्ट्रेट से कहना कि उसने अवाम की खून-पसीने की कमाई पूरी तरह हड़प ली है और अब जनता के पास फूटी कौड़ी भी बाकी नहीं रह गई है। इसलिए वह उन्हें अच्छा-अच्छा खाना खिलाए।

सबसे सुरीली आवाज हिंदी कहानी

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सबसे सुरीली आवाज हिंदी कहानी  एक दिन एक दोस्त ने आफन्ती को खाने पर बुलाया। दोस्त संगीतप्रेमी था। उसने तरह-तरह के साज आफन्ती को सुनाए। दोपहर का समय हो गया। आफन्ती के पेट में चूहे कूदने लगे। फिर भी दोस्त ने अपना संगीत जारी रखा। बाजा बजाने के साथ-साथ वह बीच-बीच में आफन्ती से गपशप भी करता जा रहा था। उसने पूछाः "आफन्ती! यह तो बताओ दुनिया में सबसे सुरीली आवाज किस बाजे की होती है? दुतारे की या रवाब की?" आफन्ती ने तुरन्त उत्तर दियाः "अरे यार, इस समय तो करछी और कड़ाही की आवाज दुनिया में सबसे सुरीली मालूम हो रही है।" कैसे पता चला ? आफन्ती अपने एक दोस्त को चिट्ठी लिख रहा था। इतने में एक आदमी दबे पांव उसके पास आ पहुंचा और चुपचाप उसके पीछे खड़ा होकर चोरी से चि‌ट्ठी पढ़ने लगा। आफन्ती को पता चल गया। पर उसने कुछ भी कहे बिना चिट्ठी लिखना जारी रखाः "...मेरे प्यारे दोस्त, मैं तुम्हें बहुत कुछ लिखना चाहता हूं। लेकिन इस समय मेरे पीछे एक बदतमीज और बेशर्म आदमी खड़ा है, जो चोरी से मेरा खत पढ़ रहा है..." यह पढ़ते ही वह आदमी बौखला गया और आफन्ती के सामने • आकर एतराज करने लगाः "

तपस्या का बेहतरीन तरीका कहानी

 तपस्या का बेहतरीन तरीका एक बार बादशाह ने आफन्ती से पूछा: "मेरे लिए तपस्या का कोई ऐसा तरीका बताओ जिससे मरने के बाद बहिश्त मिलने की गारन्टी हो जाए।" आफन्ती ने फौरन उत्तर दियाः "कोई काम किए बगैर दिन-रात गहरी नींद सोए रहिए।" यह सुनकर बादशाह को बड़ा अजीब लगा। वह बोला: "क्या सोना भी एक तरह की तपस्या है?" "हां जहांपनाह, गहरी नींद सोना ही आपके लिए तपस्या का बेहतरीन तरीका है," आफन्ती ने उत्तर दिया। "इससे आप बुरे कामों से दूर रहेंगे। कहावत है: जागे हुए बदमाश से सोया हुआ बदमाश बेहतर होता है।" मरा हुआ आदमी काउन्टी-मजिस्ट्रेट बीमार हो गया। कई मशहूर हकीमों से इलाज कराने और बहुत सी महंगी दवाइयां खाने के बाद भी वह चंगा नहीं हुआ। लाचार होकर उसे आफन्ती से इलाज कराना पड़ा। आफन्ती ने मजिस्ट्रेट को पलंग पर लेटे देखा, तो उसके माथे पर बल पड़ गए। वह नाराज होकर घरवालों से बोला: "मैं जिन्दा आदमी का इलाज करता हूं। तुम लोगों ने इस मरे हुए आदमी का इलाज करने मुझे क्यों बुलाया?" मजिस्ट्रेट के घरवाले परेशान हो गए। बोले: "क्या कहा? क्या मजिस्ट्रेट साहब

पानी देखकर प्यास बुझाना

 पानी देखकर प्यास बुझाना जाड़ों की रात थी। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। बादशाह चालीस लिहाफ ओढ़ने के बाद भी ठिठुर रहा था। उसने आफन्ती को राजमहल में बुलाकर उससे कहा: "आफन्ती, अगर तुम सिर्फ एक कमीज पहनकर महल के आंगन में पूरी रात बिता दो, तो मैं तुम्हें एक सौ व्वानपाओ दूंगा।" "ठीक है," आफन्ती ने अपना रूईदार कोट उतारकर बादशाह. को दे दिया और आंगन में चला गया। उत्तर से आने वाली हवा तीर की तरह हड्डियों में चुभ रही थी। उसने देखा आंगन के कोने में एक पत्थर का बेलन पड़ा है। वह आगे बढ़कर बेलन को धकेलने लगा। पूरी रात आंगन में बेलन धकेलता रहा। इस तरह उसे जरा भी सर्दी नहीं लगी, उलटे गर्मी लगने लगी और उसका सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया। सवेरे जब बादशाह की नींद खुली, तो उसने सोचा आफन्ती सर्दी से ठिठुरकर जरूर मर चुका होगा। लेकिन खिड़की खोलकर बाहर देखा, तो हैरान रह गया। आफन्ती आंगन में खुशी से चहलकदमी कर रहा था। बादशाह उसे एक सौ य्वानपाओ देने को हरगिज तैयार नहीं था। इसलिए उसने एक तरकीब खोज निकाली। आफन्ती को अन्दर बुलाकर उसने पूछाः "यह तो बताओ, कल रात आसमान में चांद निकला था या •

सबसे ज्यादा खुशी का दिन

 सबसे ज्यादा खुशी का दिन बादशाह ने आफन्ती से पूछाः "आफन्ती, तुम पूरे राज्य का दौरा कर चुके हो। अवाम क्या सोचती है, यह अच्छी तरह जानते हो। जरा यह तो बताओ, अवाम किस दिन को सबसे ज्यादा खुशी का दिन मानती है?" आफन्ती ने फौरन जवाब दिया: "जिस दिन आप सकुशल बहिशत में पहुंच जाएंगे!" चोरों से रक्षा एक बार आफन्ती राजमहल के सामने से गुजर रहा था। उसने देखा, मंत्रियों की निगरानी में बहुत से मजदूर महल के अहाते की दीवार को पहले से ज्यादा ऊंचा बना रहे हैं। उसे बड़ा ताज्जुब हुआ। आगे बढ़कर पूछाः "यह दीवार पहले ही काफी ऊंची है। इसे और ऊंचा बनाने की क्या जरूरत है?" "तुम भी कैसे मूर्ख हो, आफन्ती?" मंत्रियों ने जवाब दिया। "इतनी-सी बात भी नहीं समझते! यह दीवार बाहर से आने वाले चोरों को रोकने के लिए बनाई जा रही है, ताकि वे राजमहल से सोना-चांदी और हीरा-मोती न चुरा ले जाएं।" "हां, बाहर के चोर तो यह दीवार फांदकर अन्दर नहीं घुस पाएंगे," आफन्ती ने मंत्रियों की तरफ इशारा करते हुए कहा। "मगर यह तो बताइए कि महल के अन्दर के चोरों को कैसे रोका जा सकेगा?"

बच्चा जनने वाली देगची हिंदी कहानी

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 मजिस्ट्रेट और कुत्ता एक बार काउन्टी-मजिस्ट्रेट ने आफन्ती को आदेश दिया कि वह एक ऐसा खूंखार कुत्ता ढूंढ लाए जो लोगों को काटता हो और उन पर झपटता हो। कुछ दिन बाद, आफन्ती एक ऐसा कुत्ता ले आया, जो दुम दबाकर बैठा रहता था और अजनबी के सामने भी नहीं भौंकता था। यह देखकर मजिस्ट्रेट उस पर बरस पड़ाः "आफन्ती, तुम्हारे कान नहीं हैं क्या? मैंने तुमसे किस किस्म का कुत्ता ढूंढने को कहा था? क्या तुमने सुना नहीं?" "हां जनाब, मैंने अच्छी तरह सुन लिया था। कुत्ता चाहे किसी किस्म का हो, आपके यहां आकर वैसा ही बन जाएगा!" आफन्ती ने तपाक से उत्तर दिया। "यह कुत्ता भी कुछ ही दिनों में आपसे सब तरह के हुनर सीख लेगा। लोगों को काटने या उन पर झपटने का ही नहीं, उनके बटुवे खोलकर पैसे निकालने का तरीका भी जल्दी सीख जायेगा!" बच्चा जनने वाली देगची एक बार आफन्ती ने एक सेठ से देगची उधार ली। कुछ दिन बाद वह उस देगची के अन्दर एक छोटी देगची रखकर सेठ को वापस देने जा पहुंचा। यह देखकर सेठ खुश भी हुआ और हैरान भी। उसने पूछाः "आफन्ती भैया, यह छोटी देगची क्यों ले आए?" "सेठ जी." आफन्ती ने उ

खाली बर्तन मजेदार कहानी

 खाली बर्तन मजेदार कहानी  एक बार बादशाह और प्रधान मंत्री शिकार खेलने गए। जब लौट रहे थे, तो गरमी के मारे उन्हें बेहद प्यास लग गई। दोनों आफन्ती के घर के दरवाजे पर रूक गए। प्रधान मंत्री ने जोर से पुकाराः "अरे, कोई घर के अन्दर है क्या? जल्दी से दही की लस्सी ले आओ। उसमें कुछ भी डाल देना। हमें बेहद प्यास लग रही है।" यह कहते समय उसने घोड़े से नीचे उतरने का शिष्टाचार भी नहीं दिखाया। आफन्ती खाली हाथ आहिस्ता आहिस्ता घर से बाहर निकला। पहले उसने बादशाह को सलाम किया और फिर बड़े अदब से बोला: "माफ कीजिए। मैं सुबह से ही खेत में काम कर रहा था। अभी-अभी लौटा हूं। बेहद प्यास लगी थी, इसलिए सारा दही लस्सी बनाकर पी गया। अब घर में थोड़ा भी दही नहीं है।" निराश होकर बादशाह और प्रधान मंत्री को अपनी राह लेनी पड़ी। लेकिन जब वे काफी दूर चले गए, तो आफन्ती हाथ में दही का बर्तन लिये मकान के छज्जे पर खड़ा होकर बुलन्द आवाज में पुकारने लगाः "बादशाह सलामत, वापस आ जाइए!" बादशाह और प्रधान मंत्री ने दूर से दही का बर्तन देखा, तो बहुत खुश हुए। घोड़ों को वापस मोड़कर वे फौरन आफन्ती के पास जा पहुंचे।

पीठ दिखाना और राजगद्दी का वारिस

 पीठ दिखाना एक बार आफन्ती ने बादशाह की खिल्ली उड़ाई तो बादशाह ने उसे राजमहल से निकाल दिया और गुस्से में आकर कहाः "आज से मैं तुम्हारा मुंह कभी नहीं देखूंगा!" लेकिन इस घटना के कुछ ही दिन बाद पड़ोस के राज्य से कुछ विद्वान बादशाह से मिलने आए। उन्होंने बादशाह से एक जटिल सवाल पूछ लिया। बादशाह लगातार तीन दिन दिमाग खपाता रहा। फिर भी उस सवाल का जवाब नहीं दे सका। एक मंत्री ने प्रस्ताव रखाः "जहांपनाह, हमारे मुल्क में इस सवाल का जवाब आफन्ती के सिवाय और कोई नहीं दे सकता। आप आफन्ती की गुस्ताखी माफ कर दीजिए और उसे राजमहल में बुलाकर इन विद्वानों के सवाल का जवाब देने का हुक्म दीजिए।" बादशाह को लाचार होकर आफन्ती को राजमहल में बुलाने का हुक्म जारी करना पड़ा। जब आफन्ती राजमहल के दरवाजे पर पहुंचा, तो वह बादशाह की तरफ पीठ करके आगे बढ़ने लगा। यह देखकर बादशाह न तो हंस ही पाया और न रो ही पाया। उसने कहाः "आफन्ती, यह क्या तमाशा कर रहे हो? मेरी तरफ मुंह करो, मुझे तुमसे एक जरूरी काम है।" "मैं आपकी तरफ मुंह करने की जुर्रत कैसे कर सकता हूं, जहांपनाह?" आफन्ती तपाक से बोला, &quo

गधों का गवर्नर हिंदी कहानी

 गधों का गवर्नर हिंदी कहानी  बादशाह आफन्ती को अपमानित करना चाहता था। उसने आफन्ती को राजमहल में बुलवाया और मंत्रियों के सामने बड़ी संजीदगी से ऐलान किया: "आज से मैं आफन्ती को राजधानी के गधों का गवर्नर नियुक्त करता हूं।" सब मंत्री खिलखिलाकर हंस पड़े। लेकिन आफन्ती फौरन उठ खड़ा हुआ और बड़े अदब से बादशाह को सलामी देने के बाद शान से बादशाह की गद्दी पर बैठ गया। "यह क्या बदतमीजी है?" बादशाह ने खीझकर कहा, "तुम्हें मेरी गद्दी पर बैठने की जुर्रत कैसे हुई? फौरन उतर जाओ!" "शोर न मचाओ! किसी गधे को मेरे सामने रेंकने की इजाजत नहीं है! सबको गधों के गवर्गेर आफन्ती का हुक्म मानना होगा!" पैसे का मातम आफन्ती एक बड़ी-सी नदी के किनारे अकेला बैठा था। इतने में दो मोटे-ताजे आदमी वहां आ पहुंचे। नदी पर पुल नहीं था। दोनों आफन्ती से प्रार्थना करने लगेः "भाई साहब, हम दोनों राजधानी के सबसे बड़े सेठ हैं। हमने सुना है पड़ोस के राज्य में खूब मुनाफा कमाया जा सकता है। इसलिए हम व्यापार करने वहां जा रहे हैं। अगर आप हमें अपनी पीठ पर बिठाकर नदी पार करा दें, तो हम आपको एक-एक य्वानपा

पियासी जेब और आलसी को सबक

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 प्यासी जेब एक बार आफन्ती अपने एक दोस्त के घर दावत में गया। मेहमानों की खातिरदारी के लिए मेजबान ने बकरी का भुना हुआ गोश्त, सिवैयां, नान और तरह-तरह के मेवा मिष्ठान तैयार किए थे। आफन्ती की बगल में बैठा एक मेहमान न सिर्फ ज्यादा से ज्यादा भोजन चट करता जा रहा था. बल्कि बहुत से पकवान उठा-उठाकर अपनी जेब में भरता जा रहा था। यह देखकर आफन्ती ने एक चायदानी उठा ली और उसकी जेब में चाय उड़ेलने लगा। "यह क्या बदतमीजी है, आफन्ती?" वह आदमी बौखलाकर बोला। "चिल्लाओ मत," आफन्ती ने सबके सामने ऊंची आवाज में कहा, "तुम्हारी जेब बहुत सी चीजें खा चुकी है। उसे प्यास लग रही होगी। इसलिए चाय पिला रहा हूं।" आलसी को सबक गांव में एक आलसी आदमी रहता था। एक दिन उसने आफन्ती से कहा: "आफन्ती, कल मैं तुम्हारे घर खाना खाने आऊंगा। भाभी से कहकर कुछ अच्छे-अच्छे पकवान बनवा देना।" "बहुत अच्छा," आफन्ती ने उत्तर दिया। दूसरे दिन वह आदमी सुबह-सवेरे ही आफन्ती के घर जा पहुंचा और बुलन्द आवाज में बोला: "आफन्ती, कुछ पानी तो ले आओ। खाना खाने से पहले जरा हाथ धो लें।" आफन्ती उसके लिए प

अन्दर रहना ठीक नहीं हिंदी कहानी

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 अन्दर रहना ठीक नहीं हिंदी कहानी  एक आदमी ने आफन्ती से पूछाः "किसी के जनाजे में ताबूत के आगे रहना ठीक है या उसके पीछे?" आफन्ती ने उसे अपने करीब बुलाकर धीरे से कान में कहा: "ताबूत के आगे-पीछे रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। सिर्फ उसके अन्दर रहना ठीक नहीं।" इंसाफ एक बार एक गरीब आदमी आफन्ती के घर गया और अनुरोधपूर्वक बोला: "आफन्ती भाई, क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?" "बेशक, दूसरों की मदद करना न सिर्फ गौरवशाली है, बल्कि इससे मेरे मन को तसल्ली भी होती है। बताओ, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?" आफन्ती ने उससे कहा। गरीब आदमी ने एक उसांस ली और बोलाः "हम गरीब कितने बदनसीब हैं। कल मैं एक सेठ के रेस्तरां के आगे कुछ देर खड़ा रहा। सेठ ने कहा कि मैंने उसके पकवानों की खुशबू सूंघ ली है और मुझे इसके लिए उसे पैसे देने होंगे। जब मैंने इनकार कर दिया, तो वह इस मामले को काजी के पास ले गया। आज काजी के सामने मेरी पेशी है। क्या तुम मेरी वकालत कर सकते हो?" "जरूर!" आफन्ती फौरन राजी हो गया और उसके साथ काजी के पास जा पहुंचा। सेठ काजी के पास पहले से ही प

बादशाह के कठिन सवाल और आफनती

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  बादशाह के कठिन सवाल और आफनती  बादशाह अपने को बहुत अक्लमन्द समझता था। वह अक्सर तरह-तरह के कठिन सवाल पूछकर दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता था। एक बार उसने बारह हजार विद्वानों को बुलाकर उनसे पूछा कि पृथ्वी का केन्द्रबिन्दु कहां है? एक भी विद्वान उसके सवाल का जवाब नहीं दे पाया। यह देखकर बादशाह बेहद खुश हुआ। उसने पूरे राज्य में इश्तहारों और मुनादी के जरिए ऐलान करा दिया कि अगर कोई इस कठिन सवाल का सही जवाब देगा तो उसे इनाम मिलेगा, लेकिन जवाब गलत हुआ तो उसे सजा दी जाएगी। बहुत से लोगों ने इश्तहार पढ़ा और मुनादी सुनी। पर बादशाह के सवाल का जवाब देने कोई नहीं आया। सिर्फ आफन्ती अपने गधे पर सवार होकर राजमहल की तरफ चल पड़ा। बादशाह ने आफन्ती से पूछाः "क्या तुम जानते हो कि पृथ्वी का केन्द्रबिन्दु कहां है?" "हां जहांपनाह, जानता हूं." आफन्ती ने जवाब दिया, "पृथ्वी का केन्द्रबिन्दु मेरे गधे की सामने की बाई टांग के नीचे है।" "बिल्कुल झूठ है, मुझे तुम्हारी बात पर बिल्कुल यकीन नहीं है!" "आप पृथ्वी को नापकर देख लीजिए। अगर मेरी बात गलत साबित हो, तो मुझे जरूर

आफनती और कंजूस सेठ हिंदी कहानी

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 आफनती और कंजूस सेठ हिंदी कहानी  जब आफन्ती छोटा था, तो वह गांव के एक सेठ का आंगन बुहारा करता था। सेठ उसे साल के अन्त में तनख्वाह देता था और अक्सर तनख्वाह न देने का बहाना ढूंढता रहता था। एक बार जब साल का अन्तिम दिन आ गया तो सेठ ने सुबह-सवेरे ही आफन्ती को बुला भेजा और बोला: "नसरूद्दीन, आज तुम आंगन बुहारते समय एक भी बूंद पानी नहीं छिड़कोगे। पर बुहारने के बाद आंगन गीला-सा लगना चाहिए। अगर तुम ऐसा न कर पाए, तो तुम्हारी इस साल की पूरी तनख्वाह कट जाएगी और अगले साल तुम्हें मेरे यहां काम नहीं मिलेगा।" यह कहकर सेठ नए साल के लिए कुछ जरूरी चीजें खरीदने शहर चला गया। आफन्ती ने चुपचाप सेठ का आंगन बुहार डाला और फिर गोदाम से तेल की सभी तुम्बियां बाहर निकालकर सारा तेल आंगन में छिड़क दिया। जब यह काम पूरा हो गया, तो वह जीने पर बैठकर तनख्वाह के लिए सेठ की बाट जोहने लगा। शाम को सेठ शहर से वापस लौटा। जब उसने देखा कि आफन्ती ने उसका सारा तेल आंगन में छिड़क दिया है, तो वह बौखलाकर चिल्लायाः "अरे ओ उल्लू की औलाद! मेरा सारा तेल आंगन में क्यों फैला दिया? तुझे इसका मुआवजा देना होगा!" "गुस्सा

मुर्ख बनाने वाली गियान की बातें

 मुर्ख बनाने वाली गियान की बातें  आफन्ती कुछ धन कमाने के इरादे से एक रस्सी उठाकर बाजार में कुलियों की कतार में खड़ा हो गया। इतने में एक तोंदू सेठ वहां आया और जोर से बोला: "मेरे इस संदूक में चीनी मिट्टी के बढ़िया बर्तन हैं। अगर कोई इसे उठाकर मेरे घर पहुंचा देगा, तो मैं उसे तीन नीति वचन सुनाऊंगा।" उसकी बात की किसी कुली ने परवाह नहीं की। सिर्फ आफन्ती प्रभावित हो गया। उसने सोचाः पैसे तो हर जगह मिल सकते हैं, पर नीति वचन आसानी से नहीं सुने जा सकते। क्यों न इसका सामान उठाकर तीन नीति वचन सुन लूं और अपनी अक्ल बढ़ा लूं। आफन्ती सन्दूक उठाकर सेठ के साथ चल पड़ा। रास्ते में आफन्ती ने सेठ से नीति वचन सुनाने का आग्रह किया। सेठ बोला: "पहला नीति वचन यह है: अगर कोई कहे कि भूखा पेट भरे पेट से ज्यादा अच्छा है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो!" "वाह! कितनी बढ़िया बात है, सेठ जी!" आफन्ती बोला। "अब दूसरा नीति वचन सुनाइए।" "अगर कोई कहे कि पैदल चलना घोड़े की सवारी से ज्यादा आरामदेह है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो!" "बिल्कुल सही फरमाया आपने, सेठ जी। इससे बढ़िया नीत

खरबूजों के दाम हिंदी कहानी

 खरबूजों के दाम हिंदी कहानी  एक बार सर्दियों में आफन्ती ने एक हरारतखाना बनाया और उसमें खरबूजे उगाए। जब खरबूजे पक गए, तो आफन्ती ज्यादा पैसे कमाने के इरादे से कुछ अच्छे खरबूजे चुनकर बादशाह के पास ले गया। बादशाह ने खरबूजे रख लिये और आफन्ती के खरबूजों की तारीफ करते हुए तीन बार "बहुत अच्छा" कहा। पर पैसा एक भी नहीं दिया। आफन्ती को खाली हाथ महल से लौटना पड़ा। उस समय उसे बेहद भूख लग रही थी। पर कोई खाने की चीज खरीदने के लिए उसकी जेब में एक भी दमड़ी नहीं थी। थोड़ी देर सोचने के बाद वह एक रेस्तरां में जा पहुंचा और बीस समोसे खा गया। इसके बाद वह उठा और बुलन्द आवाज में तीन बार "बहुत अच्छा" कहकर रेस्तरां से बाहर जाने लगा। "पैसे तो देते जाओ" रेस्तरां का मालिक चिल्लाया। "अभी तुमने पैसे नहीं दिए।" "क्या कहा?क्या मैं अभी-अभी तुम्हें पैसे नहीं दे चुका हूं?" आफन्ती बोला। रेस्तरां का मालिक उसे पकड़कर बादशाह के पास ले गया। जब बादशाह ने यह सुना कि आफन्ती ने पैसे दिए बिना ही रेस्तरां में समोसे खाए हैं, तो वह नाराज होकर बोला: "आफन्ती, तुमने पैसे दिए बगैर रे

बुद्धि की परिचय आफनती के किस्से

 बुद्धि की परिचय आफनती के किस्से  गांव में एक नया काजी आया। किसी ने आफन्ती के सामने उसकी तारीफ के पुल बांधते हुए कहाः "सुना तुमने? नए काजी को पूरे का पूरा कुरान शरीफ जबानी याद है। उसके मस्तिष्क में बुद्धि कूट-कूटकर भरी हुई है।" "हां, यह सम्भव है." आफन्ती ने कहा। "चूंकि काजी को अपनी बुद्धि इस्तेमाल ही नहीं करनी पड़ती, इसलिए उसके मस्तिष्क में बुद्धि कूट-कूटकर भरी होना स्वाभाविक है।" अमुक दिन आइए आफन्ती ने एक छोटी-सी रंगाई वर्कशाप खोली और गांव- वासियों के लिए कपड़ा रंगना शुरू कर दिया। सब लोग उसकी रंगाई की तारीफ करने लगे। यह सुनकर एक सेठ को बहुत जलन महसूस होने लगी और वह आफन्ती को परेशान करने के इरादे से कपड़े का एक टुकड़ा लेकर आफन्ती की वर्कशाप में जा पहुंचा। दरवाजे के अन्दर घुसते ही सेठ बुलन्द आवाज में बोला: "आफन्ती, जरा यह कपड़ा तो अच्छी तरह रंग दो। मैं देखना चाहता हूं तुम्हारा हुनर कैसा है।" "सेठ जी, आप कैसा रंग चाहते हैं?" "रंग? रंग के बारे में मेरी कोई खास पसन्द तो नहीं है. पर मुझे सफेद, लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैं

सोने की खेती हिंदी कहानियाँ

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 सोने की खेती हिंदी कहानियाँ  आफन्ती ने किसी से सोने के कुछ टुकड़े उधार लिये और अपने गधे पर सवार होकर एक बालूतट पर जा पहुंचा। वहां वह बड़ी संजीदगी के साथ छलनी से सोने के टुकड़ों को छानने लगा। कुछ देर बाद बादशाह शिकार खेलता हुआ वहां से गुजरा। आफन्ती की यह हरकत उसे बड़ी अजीब लगी। उसने पूछा: "आफन्ती, तुम यह क्या कर रहे हो?" "जहांपनाह, मैं इस वक्त सोने की बुवाई में मशगूल हूं।" यह सुनकर बादशाह को और भी ताज्जुब हुआ। वह बोलाः "मेरे दानिशमन्द आफन्ती, यह तो बताओ, सोना बोने से तुम्हें क्या फायदा होगा?" "क्या आपको यह भी नहीं मालूम, जहांपनाह?" आफन्ती ने जवाब दिया, "आज सोना बो रहा हूं और शुकवार को इसकी फसल काट लूंगा। पहली फसल में मुझे कम से कम दस ल्याङ सोना जरूर मिलेगा।" यह सुनते ही बादशाह के मुंह से लार टपकने लगी। उसने सोचा, इस बढ़िया व्यापार में वह भी साझेदार क्यों न बन जाए? वह मुस्कराता हुआ आफन्ती से बोलाः "आफन्ती भाई, तुम इतना कम सोना बोकर अमीर कैसे बन सकते हो? अगर सोना ही बोना चाहते हो तो ज्यादा से ज्यादा बोओ। बीज के लिए सोना काफी न हो,

उल्लू की बोली हिंदी कहानी

 धन और न्याय एक दिन बादशाह ने आफन्ती से पूछाः "आफन्ती, अगर तुम्हें धन और न्याय में से किसी एक चीज को चुनना पड़े, तो तुम किसे चुनोगे?" "धन को चुनूंगा।" "आखिर क्यों?" बादशाह बोला। "अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो जरूर न्याय को चुनता, धन को नहीं। धन तो आसानी से प्राप्त हो सकता हैं, पर न्याय मुश्किल से मिलता है।""आदमी उसी चीज को पाने की इच्छा रखता है जहांपनाह जिसका उसके पास अभाव हो!" आफन्ती ने तुरंत उत्तर दिया। उल्लू की बोली आफन्ती अक्सर कहता रहता था कि वह पक्षियों की बोलियां समझ सकता है। यह बात बादशाह के कानों में पड़ी तो उसने आफन्ती को अपने साथ शिकार खेलने बुला लिया। चलते-चलते वे एक ऐसी गुफा के सामने जा पहुंचे, जो बुरी तरह डह चुकी थी। उसके खण्डहरों पर एक उल्लू बैठा हुआ था। उल्लू की आवाज सुनकर बादशाह ने पूछाः "आफन्ती! यह उल्लू क्या कह रहा है?" "जहांपनाह, यह कह रहा है कि अगर आपने रिआया पर जुल्म ढाना बन्द न किया तो वह दिन दूर नहीं जब आपकी सल्तनत भी इस गुफा की ही तरह खण्डहर बन जाएगी।" बहिश्त बनाम दोजख एक दिन बादशाह और आफन्ती

बकरी न खाने वाला भेड़िया हिंदी कहानियाँ

 बकरी न खाने वाला भेड़िया हिंदी कहानियाँ  एक बुजुर्ग चरवाहे ने आफन्ती से पूछाः "आफन्ती भाई, मैं अब तक न जाने कितनी भेड़-बकरियां पाल चुका हूं। पर मेरी न जाने कितनी भेड़-बकरियों को भेड़िये चटकर गए हैं। क्या इस दुनिया में कोई ऐसा भेड़िया भी है जो बकरी न खाता हो?" "क्यों नहीं? जरूर है!" आफन्ती ने उत्तर दिया। "वह कैसा भेड़िया है?" "जो मर चुका हो!" बादशाह की कीमत एकं दिन बादशाह और आफन्ती एक साथ स्नान कर रहे थे। बादशाह ने पूछाः "आफन्ती, अगर मुझे बाजार में एक गुलाम के तौर पर बेचा जाए, तो क्या क़ीमत मिलेगी?" "ज्यादा से ज्यादा दस य्वानपाओ!" आफन्ती ने उत्तर दिया। बादशाह गुस्से से आगबबूला हो उठा। बौखलाकर बोला: "तुम निहायत बेवकूफ आदमी हो। जान पड़ता है तुम्हारी अक्ल घास चरने गई हुई है। मेरे इस कढ़े हुए मफलर की कीमत भी दस व्वानपाओ से कम नहीं है!" "ठीक है, मेरे अक्लमन्द बादशाह!" आफन्ती मफलर की ओर इशारा करता हुआ बोला। "मैंने दस य्वानपाओ इसी मफलर की कीमत बताई है।" दो की जगह चार पैर एक बार आफन्ती की आंखों में तकलीफ

सच्चे दोस्त आफनती के किस्से कहानी हिंदी

 सच्चे दोस्त आफनती के किस्से कहानी हिंदी  जब आफन्ती काजी बन गया, तो उसके साथ दोस्ती बढ़ाने वालों में होड़ होने लगी। किसी ने उससे कहा: "तुम कितने मजे में हो, आफन्ती! अब तुम्हारे इतने सारे दोस्त हो गए हैं।" आफन्ती ने जवाब दियाः "मेरे सच्चे दोस्त कितने हैं, इसका पता लगाना मुश्किल है। यह सिर्फ तभी पता चलेगा जब मैं काजी नहीं रहूंगा।" बादशाह का सलाहकार एक दिन किसी मंत्री ने बादशाह से आफन्ती की सिफारिश को और कहा: "जहांपनाह, आफन्ती बहुत बड़ा आलिम-फाजिल हैं। वह न सिर्फ बहस-मुबाहिसा करने में माहिर है, बल्कि बेइन्तहां सूझबूझ वाला आदमी भी है। आप उसे अपना सलाहकार क्यों नहीं नियुक्त कर लेते?" "ठीक है," बादशाह राजी हो गया। उसने आफन्ती को बुलाने के लिए फौरन आदमी भेज दिया। "आफन्ती," बादशाह ने पूछा, "मैं चाहता हूं कि मेरी रिआया खुशहाल हो जाए। इसके लिए मुझे क्या-क्या उपाय करने चाहिए?" "जहांपनाह, आप इसके लिए बहुत से उपाय कर सकते हैं। सवाल सिर्फ यह है कि आप उन्हें करना चाहते हैं या नहीं?" आफन्ती ने गम्भीरता से कहा। "अगर आप वह तमा

सच्ची बातें आफनती के किस्से कहानी हिंदी

 सच्ची बातें आफनती के किस्से कहानी हिंदी  एक बार बादशाह अपनी रिआया का हालचाल मालूम करने के इरादे से आफन्ती के घर गया। वह बोला: "आफन्ती, जरा मुझे अपनी जमीन तो दिखाओ!" "मेरी सारी जमीन होजा के कब्जे है," आफन्ती ने उत्तर दिया। "तुम्हारा अनाज कहां है?" "सारा अनाज आपके महल में पहुंचा चुका हूं।" "तुम्हारे मकान की छत कहां है?" "उसे साहूकार उठा ले गया है।" "तुम्हारे घर का फर्नीचर कहां है?" "उसे काजी उठा ले गया है।" "तुम्हारा बेटा कहां है?" "जिला अधिकारी के जुल्म की वजह से उसकी मृत्यु हो गई है।" "और तुम्हारी पत्नी कहां है?" "इस डर से कि उसे देखकर कहीं आप रीझ न जाएं, मैंने उसे छिपा दिया है।" "तुम्हारी हर बात झूठी है, आफन्ती! आखिर तुम्हें मेरे सामने झूठ बोलने की जुर्रत कैसे हुई?" बादशाह ने गरजकर कहा। "नहीं जहांपनाह, ये सब बातें सच्ची हैं।" आफन्ती ने उत्तर दिया। "अगर मैं झूठ बोलता, तो आप शायद इतने गुस्से में न - आते!" Hindi Kahani

राक्षस और कंजूस सेठ

 राक्षस और कंजूस सेठ  एक बार बाजार में एक ठेकेदार ने आफन्ती से पूछाः "मैंने सुना है तुम अक्सर राक्षसों के सम्पर्क में रहते हो। क्या बता सकते हो कि राक्षस का चेहरा-मोहरा कैसा होता है?" आफन्ती ने जवाब दियाः "क्यों नहीं? आईने में अपनी सूरत देखते ही तुम्हें फौरन उसके चेहरे-मोहरे का पता चल जाएगा।" कंजूस सेठ एक सेठ बहुत कंजूस था। एक बार उसने आफन्ती को खाने पर बुलाया। सेठ ने अपना कटोरा तो दूध से ऊपर तक भर लिया और आफन्ती को आधे कटोरे से भी कम दूध देकर उससे बार-बार कहता रहा: "लो भाई, यह दूध पी लो ! तुम्हारी खातिरदारी के लिए मेरे पास कोई अच्छी चीज तो नहीं। कटोरा भर दूध जरूर पी लो।" "सेठ जी, जरा एक आरी तो दीजिए," आफन्ती ने कहा। सेठ आफन्ती की बात बिल्कुल नहीं समझ पाया और बोला "तुम्हें आरी क्यों चाहिए?" "बात यह है," आफन्ती ने अपने सामने पड़े कटोरे की ओर इशारा करते हुए कहा, "इस कटोरे का ऊपर का हिस्सा बिल्कुल फालतू है। इसीलिए बेहतर यह होगा कि पहले मैं आरी से इस फालतू हिस्से को काट दूं!" Hindi kahani  

सिर्फ अपनी मंजिल तोड़ रहा हूं

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 सिर्फ अपनी मंजिल तोड़ रहा हूं आफन्ती ने एक सेठ से सौ य्वानपाओ उधार लिये और अपने परिवार के लोगों के साथ कठोर परिश्रम करके एक दुमंजिला मकान बनाया। मकान बहुत सुन्दर था। आफन्ती अभी नए मकान में गृहप्रवेश भी नहीं कर पाया था कि सेठ मकान की दूसरी मंजिल पर कब्जा करने के इरादे से उससे बोलाः "अगर तुम अपने मकान की दूसरी मंजिल मुझे दे दो, तो तुम्हारा कर्जा उत्तर जाएगा। वरना मेरा सारा कर्जा तुम्हें अभी चुकाना होगा।" "मुझे मंजूर है," यह कहकर आफन्ती ने सेठ की बात फौरन मान ली और उससे बोला "मैं सोच रहा था. तुम्हारा ऋण कैसे चुकाऊंगा। अच्छा हुआ, तुमने खुद ही उपाय सुझा दिया।" सेठ का परिवार इतराता हुआ आफन्ती के नए मकान की दूसरी मंजिल पर रहने लगा। कुछ दिन बीतने के बाद आफन्ती ने अपने सात-आठ पड़ोसियों को बुलाया और उनसे गैंतियां उठाकर मकान की दीवार तोड़ने को कहा। गैतियों की आवाज सुनकर सेठ ऊपर की मंजिल से बौखलाकर बोला: "क्या तुम पागल हो गए हो, आफन्ती? नए मकान को क्यों तोड़ रहे हो?" "तुम्हारा इससे क्या सरोकार? तुम इत्मीनान से दूसरी मंजिल में बैठे रहो।" दीवार पर

एक टांग वाला कलहंस

 एक टांग वाला कलहंस एक बार आफन्ती को एक कलहंस मिला। वह उसे बादशाह को भेंट करने चल पड़ा। रास्ते में उसे भूख लगी। सड़क के किनारे बैठकर उसने कलहंस की एक टांग स्वयं खा ली। महल में पहुंचकर उसने बाकी कलहंस को बड़े अदब के साथ बादशाह को भेंट कर दिया। बादशाह ने कलहंस को उलट-पलट कर गौर से देखने के बाद उससे पूछाः "आफन्ती, तुम्हारे कलहंस की केवल एक ही टांग क्यों है?" आफन्ती ने यह नहीं सोचा था कि बादशाह भेंट की गई चीज को इतने गौर से देखेगा। कुछ समय तक उसे कोई उत्तर नहीं सूझा। संयोग से उसने देखा, महल के अहाते में सभी कलहंस अपनी एक टांग मोड़कर केवल एक टांग पर खड़े हैं। आफन्ती को बादशाह के सवाल का जवाब मिल गया। कलहंसों की ओर इशारा करता हुआ वह बोलाः "जहांपनाह, कुदरत ने कलहंस को केवल एक टांग दी है, दो नहीं। आप जरा अपने महल के अहाते में खड़े कलहंसों पर तो नजर डालिए।" बादशाह ने कलहंसों को देखते ही अंगरक्षकों को हुक्म दिया कि वे डण्डे से उन्हें भगा दें। बेचारे कलहंस डण्डे की मार से बचने के लिए दोनों टांगों पर चलते हुए तितर-बितर हो गए। बादशाह ने चुटकी लीः "आफन्ती, क्या इनमें एक भी

बादशाह का जामा

 बादशाह का जामा एक बार बादशाह ने एक शानदार दावत दी। दावत में सभी अमीर-उमराव, हाकिम हुक्मरान निमंत्रित थे। इस अवसर पर बादशाह ने आफन्ती को भी निमंत्रण दिया था। दावत के बाद बादशाह ने हर मेहमान को एक बढ़िया पोशाक भेंट की। लेकिन आफन्ती का अपमान करने के लिए उसे गधे की पीठ पर रखा जाने वाला सन का जामा थमा दिया। आफन्ती ने बड़े अदब के -साथ बादशाह के हाथ से यह जामा ले लिया और अनेक बार झुककर शुक्रिया अदा किया। इसके बाद वह बुलन्द आवाज में बोला: "माननीय मेहमानो, बादशाह सलामत ने आप लोगों को रेशम-साटन के कपड़े भेंट किए हैं। पर ये सब बाजार में मिल सकते हैं। जरा गौर फरमाइए, बादशाह सलामत मेरी कितनी इज्जत करते हैं। उन्होंने मुझे अपना खुद का जामा भेंट कर दिया है।" Hindi kahaniya