अन्दर रहना ठीक नहीं हिंदी कहानी
अन्दर रहना ठीक नहीं हिंदी कहानी
एक आदमी ने आफन्ती से पूछाः "किसी के जनाजे में ताबूत के आगे रहना ठीक है या उसके पीछे?"
आफन्ती ने उसे अपने करीब बुलाकर धीरे से कान में कहा: "ताबूत के आगे-पीछे रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। सिर्फ उसके अन्दर रहना ठीक नहीं।"
इंसाफ
एक बार एक गरीब आदमी आफन्ती के घर गया और अनुरोधपूर्वक बोला:
"आफन्ती भाई, क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?"
"बेशक, दूसरों की मदद करना न सिर्फ गौरवशाली है, बल्कि इससे मेरे मन को तसल्ली भी होती है। बताओ, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?" आफन्ती ने उससे कहा।
गरीब आदमी ने एक उसांस ली और बोलाः "हम गरीब कितने बदनसीब हैं। कल मैं एक सेठ के रेस्तरां के आगे कुछ देर खड़ा रहा। सेठ ने कहा कि मैंने उसके पकवानों की खुशबू सूंघ ली है और मुझे इसके लिए उसे पैसे देने होंगे। जब मैंने इनकार कर दिया, तो वह इस मामले को काजी के पास ले गया। आज काजी के सामने मेरी पेशी है। क्या तुम मेरी वकालत कर सकते हो?"
"जरूर!" आफन्ती फौरन राजी हो गया और उसके साथ काजी के पास जा पहुंचा।
सेठ काजी के पास पहले से ही पहुंच चुका था और उसके साथ गपशप कर रहा था।
गरीब आदमी को देखते ही काजी ने पूछताछ किए बिना फटकार लगाई:
"तुम्हें शर्म नहीं आती! रेस्तरां के पकवानों की खुशबू सूंघने के बाद भी तुम पैसे देने से इनकार कर रहे हो! फौरन सेठ जी को पैसे दे दो!"
"जरा ठहरिये, काजी साहब!" आफन्ती ने आगे बढ़कर काजी को सलाम किया और धीरे से बोला: "ये मेरे बड़े भाई हैं। इनके पास पैसा नहीं है। सेठ जी को पैसे मैं दूंगा।"
आफन्ती ने अपने कमरबन्द से एक छोटी-सी थैली निकाली जिसमें तांबे के सिक्के रखे हुए थे। उसने थैली को सेठ के कान के पास ले जाकर कई बार हिलाया और पूछाः
"सेठ जी, क्या थैली में रखे पैसों की खनखनाहट आप सुन रहे है?"
"हां, सुन रहा हूं, जरूर सुन रहा हूं!" सेठ ने कहा।
"तो ठीक है। कल इन्होंने आपके पकवानों की खुशबू सूंघी थी, और आज आपने मेरे पैसों की खनखनाहट सुन ली है। अब हमारा हिसाब साफ हो गया है।"
इतना कहकर आफन्ती अपने गरीब साथी का हाथ पकड़कर वहां से चला गया।
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