खरबूजों के दाम हिंदी कहानी
खरबूजों के दाम हिंदी कहानी
एक बार सर्दियों में आफन्ती ने एक हरारतखाना बनाया और उसमें खरबूजे उगाए। जब खरबूजे पक गए, तो आफन्ती ज्यादा पैसे कमाने के इरादे से कुछ अच्छे खरबूजे चुनकर बादशाह के पास ले गया। बादशाह ने खरबूजे रख लिये और आफन्ती के खरबूजों की तारीफ करते हुए तीन बार "बहुत अच्छा" कहा। पर पैसा एक भी नहीं दिया।
आफन्ती को खाली हाथ महल से लौटना पड़ा। उस समय उसे बेहद भूख लग रही थी। पर कोई खाने की चीज खरीदने के लिए उसकी जेब में एक भी दमड़ी नहीं थी। थोड़ी देर सोचने के बाद वह एक रेस्तरां में जा पहुंचा और बीस समोसे खा गया।
इसके बाद वह उठा और बुलन्द आवाज में तीन बार "बहुत अच्छा" कहकर रेस्तरां से बाहर जाने लगा।
"पैसे तो देते जाओ" रेस्तरां का मालिक चिल्लाया। "अभी तुमने पैसे नहीं दिए।"
"क्या कहा?क्या मैं अभी-अभी तुम्हें पैसे नहीं दे चुका हूं?" आफन्ती बोला।
रेस्तरां का मालिक उसे पकड़कर बादशाह के पास ले गया। जब बादशाह ने यह सुना कि आफन्ती ने पैसे दिए बिना ही रेस्तरां में समोसे खाए हैं, तो वह नाराज होकर बोला:
"आफन्ती, तुमने पैसे दिए बगैर रेस्तरां में समोसे क्यों खाए?"
"जहांपनाह, मैंने कोई गलती नहीं की." आफन्ती ने जवाब दिया। "रेस्तरां का मालिक बहुत लालची है। मैने इसके यहां सिर्फ बीस समोसे खाए, और आपने जो तीन "बहुत अच्छा' मेरे खरबूजे खरीदने के बाद मुझे दिये थे वे सब मैंने इसे दे दिए। फिर भी यह मुझसे पैसे मांग रहा है!"
यह सुनकर बादशाह निरुत्तर हो गया।
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