उड़ने वाला घोड़ा देसी कहानियाँ

 बादशाह का चेहरा


जब आफन्ती बादशाह का अंगरक्षक था, तो एक दिन बादशाह ने भौंहें सिकोड़कर उससे कहाः


"कल मैंने आईने में अपनी सूरत देखी तो पता चला कि मैं वाकई बेहद बदसूरत हूं। अब मैंने फैसला कर लिया है कि आयन्दा अपना चेहरा आईने में कभी नहीं देखूंगा!"


"जहांपनाहः" आफन्ती तुरन्त बोला, "आप अपनी सूरत सिर्फ एक बार देखकर ही उससे घृणा करने लगे हैं। लेकिन मुझे रोजाना कम से कम दस-बीस बार आपकी सूरत देखनी पड़ती है। आप सोच भी नहीं सकते कि मेरा क्या हाल होता है!"


उड़ने वाला घोड़ा देसी कहानियाँ


बादशाह ने आफन्ती से पूछाः


"आफन्ती, बहुत दिनों से मेरी इच्छा है कि आकाश में उड़कर पूरी दुनिया की सैर करूं। मैं दुनिया के पहाड़ों, नदियों, शहरों, गांवों, जंगलों और मैदानों को देखकर अपना ज्ञान बढ़ाना चाहता हूं। यह इच्छा पूरी करने के लिए कोई अच्छी तरकीब बता सकते हो?"


"जरूर बता सकता हूं. जहांपनाह!" आफन्ती बुलन्द आवाज में बोला। यह सुनकर बादशाह की बांछें खिल गई और वह बोला: "तुम सचमुच बड़े अकलमंद आदमी हो! बताओ, वह कौन-सी तरकीब है?"


"आकाश में पहुंचना कोई मुश्किल काम नहीं है जहांपनाह, बशर्ते आपके अन्दर धीरज हो," आफन्ती ने कहा। "आप अपना खजूरी रंग का घोड़ा मुझे दे दीजिए। मैं उस पर सवार होकर दूर के एक पहाड़ से एक खास बूटी ले आऊंगा, जिसे खाकर घोड़े की पौठ पर पंख निकल आएंगे। तब आप उस पर बैठकर अपनी इच्छा पूरी कर सकेंगे। पर आने-जाने में कोई एक साल लग जाएगा। क्या इन्तजार कर सकते हैं?"


"हां आफन्ती, एक साल तो दूर रहा, इसके लिए मैं तीन साल भी इन्तजार कर सकता हूं!"


बादशाह खुशी से फूला न समाया। उसने अपने अंगरक्षक को आदेश दिया कि उसका घोड़ा फौरन आफन्ती के हवाले कर दे


और इनाम के तौर पर उसे बहुत सा सोना-चांदी भी दे दे। आफन्ती घोड़े पर सवार हो गया। चाबुक मारते ही घोड़ा हवा से बातें करने लगा।


घर लौटने के बाद आफन्ती अपनी पत्नी से बोला: "जाओ, एक छुरा तो ले आओ। आज हमें खाने के लिए काफी गोश्त मिल गया है।"


पत्नी ने सारी बात सुनी, तो अपनी हंसी न रोक पाई। पर साथ


ही उसे कुछ चिन्ता भी होने लगी। बोली: "तुम बिना वजह यह आफत क्यों मोल ले रहे हो?"


"इस दुनिया में अगर हम आफत से डरते रहेंगे, तो भला हमें खाने को गोश्त कैसे मिल सकेगा?" आफन्ती ने पत्नी को समझाते हुए कहा और घोड़े को हलाल कर दिया।


करीब एक साल बाद आफन्ती राजमहल में जा पहुंचा। उसे देखते ही बादशाह ने मुस्कराकर पूछाः


"आफन्ती, तीन दिन बाद एक साल पूरा होने वाला है। क्या मेरे घोड़े की पीठ पर पंख निकल आए हैं?"


"हां जहांपनाह," आफन्ती ने मूंछों पर हाथ फेरते हुए जवाब दिया।


"तुमने सचमुच कमाल कर दिखाया है।" बादशाह खुशी से उछल पड़ा। "घोड़े को साथ क्यों नहीं लाए?"


"मैं उसे साथ ला रहा था." आफन्ती दुखी होने का स्वांग रचता हुआ बोला। "मगर वह रास्ते में ही पंख फड़‌फड़ाता हुआ आकाश में उड़ गया।"


यह सुनते ही बादशाह को भारी सदमा पहुंचा और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा।


"खुदा हाफिज, बादशाह सलामत!" यह कहता हुआ आफन्ती


तेजी के साथ राजमहल से बाहर चला गया।


Desi kahaniyan

Comments

Popular posts from this blog

बादशाह के कठिन सवाल और आफनती

मुर्ख बनाने वाली गियान की बातें

मूर्ख बादशाह और आफनती

अन्दर रहना ठीक नहीं हिंदी कहानी

खुदा का पैगाम हिंदी मजेदार कहानियां

खरबूजों के दाम हिंदी कहानी

खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ

सबसे ज्यादा खुशी का दिन

तपस्या का बेहतरीन तरीका कहानी