मुर्ख बनाने वाली गियान की बातें

 मुर्ख बनाने वाली गियान की बातें 


आफन्ती कुछ धन कमाने के इरादे से एक रस्सी उठाकर बाजार में कुलियों की कतार में खड़ा हो गया। इतने में एक तोंदू सेठ वहां आया और जोर से बोला:


"मेरे इस संदूक में चीनी मिट्टी के बढ़िया बर्तन हैं। अगर कोई इसे उठाकर मेरे घर पहुंचा देगा, तो मैं उसे तीन नीति वचन सुनाऊंगा।"


उसकी बात की किसी कुली ने परवाह नहीं की। सिर्फ आफन्ती प्रभावित हो गया। उसने सोचाः पैसे तो हर जगह मिल सकते हैं, पर नीति वचन आसानी से नहीं सुने जा सकते। क्यों न इसका सामान उठाकर तीन नीति वचन सुन लूं और अपनी अक्ल बढ़ा लूं। आफन्ती सन्दूक उठाकर सेठ के साथ चल पड़ा।


रास्ते में आफन्ती ने सेठ से नीति वचन सुनाने का आग्रह


किया। सेठ बोला:


"पहला नीति वचन यह है: अगर कोई कहे कि भूखा पेट भरे पेट से ज्यादा अच्छा है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो!"


"वाह! कितनी बढ़िया बात है, सेठ जी!" आफन्ती बोला। "अब दूसरा नीति वचन सुनाइए।"


"अगर कोई कहे कि पैदल चलना घोड़े की सवारी से ज्यादा आरामदेह है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो!"


"बिल्कुल सही फरमाया आपने, सेठ जी। इससे बढ़िया नीति वचन और क्या हो सकता है?" आफन्ती बोला। "अब तीसरा नीति वचन भी सुना दीजिए।"


"अगर कोई कहे कि दुनिया में तुमसे बड़ा बेवकूफ कुली मिल सकता है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो।"


सेठ का तीसरा नीति वचन सुनते ही आफन्ती ने अपने हाथ का सन्दूक यकायक छोड़ दिया और वह धम्म की आवाज के साथ जमीन पर गिर पड़ा। सन्दूक की ओर इशारा करते हुए आफन्ती ने सेठ से कहा:


"अगर कोई कहे कि इस सन्दूक में रखे चीनी मिट्टी के बर्तन टूटे नहीं हैं, तो उस पर हरगिज यकीन न करो।"

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