मूर्ख बादशाह और आफनती

 दुआ बनाम बददुआ

मूर्ख बादशाह और आफनती


उन दिनों आफन्ती एक मोची का काम करता था। एक मौलवी उसके पास आया और बोला:


"आफन्ती भाई, मेरे जूते का तल्ला उखड़ गया है। जरा इसकी मरम्मत तो कर दो। मैं खुदा से तुम्हारे लिए दुआ मांगूंगा।"


"माफ कीजिए, मौलवी साहब, मेरे पास फुरसत नहीं है।" आफन्ती सिर उठाए बिना काम जारी रखता हुआ बोला। "आप अपना जूता किसी दूसरे मोची से ठीक क्यों नहीं करवा लेते।"


"यह कैसे हो सकता है?" मौलवी ने कड़ी आवाज में कहा। "मेरा काम तुम्हें अभी करना होगा। वरना मैं खुदा से तुम्हारे लिए बददुआ मांगूंगा। तब तुम्हें पछताना पड़ेगा।"


"वाह!" आफन्ती हाथ का काम रोककर बोला, "अगर आपकी दुआ वाकई इतनी कारगर है, तो आपने खुदा से यह दुआ क्यों नहीं मांगी कि आपका जूता कभी न टूटे?"


मूर्ख बादशाह और आफनती 


नया बादशाह निरा मूर्ख और अनाड़ी था। विदेशी राजदूतों के साथ भेंट के समय भी ऊलजलूल बातें कर बैठता था। सुनकर लोग अक्सर ठहाके मारने लगते थे। इससे देश की साख धूल में मिलती जा रही थी।


मंत्रियों की सिफारिश पर बादशाह ने अक्लमंद आफन्ती को अपना सलाहकार बना लिया। आफन्ती ने सलाह दी:


"जहांपनाह, जब कोई विदेशी राजदूत आपसे मुलाकात करने आएगा, तो मैं आपके पांव से एक डोरी बांध दूंगा, अगर आपकी बातें ठीक होंगी, तो मैं चुपचाप खड़ा रहूंगा। अगर आपकी बातें गधे के होंठों और घोड़े के जबड़ों की तरह बेमेल होंगी, तो मैं फौरन डोरी खींच दूंगा। इशारा पाते ही आप फौरन रूक जाएं।"


बादशाह को उसकी सलाह जंच गई। वह आफन्ती की सराहना करता हुआ बोला:


"तुम्हारा सुझाव वाकई बहुत बढ़िया है।" दूसरे दिन पड़ोसी देश का एक राजदूत बादशाह से मुलाकात करने आया। बादशाह ने उससे पूछाः


"आपके देश में कुत्ते-बिल्लियों का क्या हाल है? भेड़-बकरियों की सेहत कैसी है?..."


बादशाह की ऊलजलूल बात सुनकर आफन्ती ने फौरन डोरी खींच दी और राजदूत को सम्बोधित करता हुआ बड़े अदब से बोला:


"जनाब हमारे बादशाह बहुत बड़े आलिम फाजिल हैं। उनकी हर बात का मतलब बड़ा गहरा होता है और उसे आम आदमी आसानी से नहीं समझ सकता। 'कुत्ते-बिल्लियों' से उनका तात्पर्य आपके देश के अफसरों व सेनापतियों से है, और 'भेड़-बकरियों' से उनका अभिप्राय आपके देश की आम जनता से है।"


यह सुनते ही राजदूत खड़ा हो गया और बड़े अदब के साथ बादशाह के सामने झुककर बोलाः


"बादशाह सलामत, आपकी दानिशमन्दी सचमुच काबिले तारीफ है!"


राजदूत की बात सुनते ही बादशाह आफन्ती की तरफ मुड़ा और उसे फटकारता हुआ बोला:


"अरे ओ उल्लू की औलाद। अगर मेरी बात का इतना गहरा मतलब था, तो तूने मेरे पांव में बंधी डोरी क्यों खींची?"

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