खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ

खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ 

खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ


एक बार आफन्ती के एक कंजूस दोस्त ने भोजन के लिए उसे अपने घर बुलाने का पाखण्ड रचा। आफन्ती निश्चित समय पर उसके घर जा पहुंचा। दोस्त अपने मकान की दूसरी मंजिल की खिड़की से झांक रहा था। आफन्ती को देखते ही वह पत्नी के कान में कुछ फुस- फुसाया। पत्नी फाटक पर जाकर बोली:


"क्या आप ही आफन्ती हैं? बच्चों के अब्बा को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा है। आप किसी दूसरे दिन तशरीफ लाइए!"


"ठीक है, मैं जाता हूं।" आफन्ती बोला। "मगर एक बात उनसे जरूर कह देना। आइन्दा वे जब कभी बाहर जाएं, अपना सिर खिड़की पर न लटका जाएं।"


अनोखा नुस्खा


आफन्ती एक अच्छा हकीम भी था। एक बार चर्बी के बोझ से लदा एक सेठ उसके पास आया और खींसें निकालकर बोला:


"आफन्ती, मैं अपने मोटापे से बड़ा परेशान हूं। क्या तुम मेरी इस बीमारी का इलाज कर सकते हो?"


आफन्ती ने सेठ को ऊपर से नीचे तक बड़े गौर से देखा और नुस्खा लिखकर उसके हाथ में थमा दिया। नुस्खे में लिखा थाः "आप पन्द्रह दिन के अन्दर मर जाएंगे।"


यह अनोखा नुस्खा पढ़कर सेठ के पैरों तले की जमीन खिसकने लगी। वह जैसे-तैसे घर पहुंचा और पलंग पर पड़ गया।


घबराहट के मारे वह न तो एक कौर नान खा पाया और न एक घंट चाय पी सका। सिर्फ पन्द्रह दिन के अन्दर ही उसकी सारी चर्बी गायब हो गई और शरीर कंकालमात्र रह गया।


जब पन्द्रह दिन बीत गए, तो वह फिर एक बार आफन्ती के पास जा पहुंचा और झुंझलाकर बोला: "आफन्ती, तुमने मुझे धोखा क्यों दिया? तुमने तो कहा था कि में पन्द्रह दिन के अन्दर मर जाऊंगा। फिर भी मैं जिन्दा कैसे हूं?"


"ज्यादा चालाकी न दिखाइए, सेठ जी!" आफन्ती ने गम्भीरता से कहा। "मेरे इस नुस्खे की ही बदौलत तो आपको अपनी फालतू चर्बी से छुटकारा मिला है। लाइए, जल्दी से मेरी फीस!"


मेरा हाथ लीजिए


एक बार एक इमाम तालाब के किनारे हाथ-पांव धो रहा था। अचानक उसका पांव फिसल गया और वह तालाब में गिर पड़ा। किनारे पर खड़े कई लोगों ने उसे बचाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया और उससे कहाः "इमाम साहब, अपना हाथ मुझे दीजिए, मैं आपको बाहर खींच लूंगा।"


लेकिन इमाम ने हाथ देने से इंकार कर दिया। यह देखकर आफन्ती जोर से चिल्लायाः "भाइयो, इमाम साहब अपनी जिन्दगी में सिर्फ दूसरों से लेना जानते हैं, किसी को कुछ देना नहीं जानते।" फिर उसने इमाम की तरफ हाथ बढ़ाया और बोलाः "इमाम साहब, मेरा हाथ लीजिए, मैं आपको बाहर खींच लूंगा!"


यह सुनते ही इमाम आफन्ती का हाथ पकड़कर तालाब के किनारे आ गया।

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