दो गधों का बोझ और हजार बार कोसना

 दो गधों का बोझ


एक बार बादशाह और प्रधान मंत्री आफन्ती को साथ लेकर जंगल में शिकार खेलने गए। सूरज अंगारे बरसा रहा था। गर्मी के मारे बादशाह और प्रधान मंत्री दोनों ने अपने कपड़े उतारकर आफन्ती के कन्धे पर लाद दिए। आफन्ती पसीने से तरबतर हो गया। ऊपर से बादशाह ने आफन्ती की हंसी उड़ाते हुए चुटकी ली:


"ओह! आफन्ती, तुम्हारे कन्धों पर कम से कम एक गधे का बोझ जरूर है।"


"एक नहीं दो गधों का बोझ है, जहांपनाह!" आफन्ती ने तुरन्त जवाब दिया।


आफन्ती की तीरन्दाजी


एक आदमी बादशाह के सामने आफन्ती की तीरन्दाजी की तारीफों के पुल बांधने लगा। यह सुनकर बादशाह ने आफन्ती को अपने साथ शिकार खेलने का निमंत्रण दिया। रास्ते में दूर से एक पेड़ दिखाई दिया। बादशाह ने आफन्ती से पेड़ को निशाना बनाकर तीर चलाने को कहा। आफन्ती ने तीर चलाया, पर वह निशाना चूक गया। बादशाह खिलखिलाकर हंस पड़ा।


"इसमें हंसने की क्या बात है, जहांपनाह?" आफन्ती बोला।


"यह तो मैं आपकी तीरन्दाजी की नकल कर रहा था।" यह कहकर उसने फिर एक तीर चलाया। पर वह भी निशाना चूक गया। बादशाह फिर एक बार जोर से हंस पड़ा।


"इसमें हंसने की क्या बात है, जहांपनाह!" आफन्ती बोला।


"यह तो मैं आपके मंत्रियों की तीरन्दाजी की नकल कर रहा था!" इसके बाद उसने तीसरा तीर चलाया और वह निशाने पर बैठ गया।


"देखा जहांपनाह?" तीर के लक्ष्य पर लगते ही आफन्ती ने बादशाह को झुककर सलाम किया और बोला: "यह मेरी यानी नसरूद्दीन आफन्ती की तीरन्दाजी है।"


हजार बार कोसना


आफन्ती सड़क पर जा रहा था। अचानक एक पत्थर से ठोकर लगी और वह मुंह के बल गिर पड़ा। आफन्ती चिढ़कर पत्थर से बोला:


"उल्लू के पट्टे, मैं तुझे हजार बार कोसता हूं।"


संयोग से एक शरीफजादा वहां से गुजर रहा था। उसने सोचा आफन्ती उसी को कोस रहा है। उसने काजी के पास जाकर आफन्ती के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी।


काजी ने शरीफजादे की शिकायत सुनी और बिना आफन्ती का पक्ष सुने ही उस पर चांदी के आधे सिक्के का जुर्माना कर दिया।


आफन्ती ने अपनी जेब से चांदी का एक सिक्का निकालकर मेज पर फेंक दिया और काजी से बोला:


"हजार बार कोसने का जुर्माना अगर सिर्फ आधा-चांदी का सिक्का है तो मैं पूरा सिक्का देता हूं। बकाया रकम मुझे लौटाने की जरूरत नहीं है। उसके बदले मैं हजार बार तुम्हें भी कोसता हूं।"

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