पानी देखकर प्यास बुझाना

 पानी देखकर प्यास बुझाना


जाड़ों की रात थी। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। बादशाह चालीस लिहाफ ओढ़ने के बाद भी ठिठुर रहा था। उसने आफन्ती को राजमहल में बुलाकर उससे कहा: "आफन्ती, अगर तुम सिर्फ एक कमीज पहनकर महल के आंगन में पूरी रात बिता दो, तो मैं तुम्हें एक सौ व्वानपाओ दूंगा।"


"ठीक है," आफन्ती ने अपना रूईदार कोट उतारकर बादशाह. को दे दिया और आंगन में चला गया। उत्तर से आने वाली हवा तीर की तरह हड्डियों में चुभ रही थी। उसने देखा आंगन के कोने में एक पत्थर का बेलन पड़ा है। वह आगे बढ़कर बेलन को धकेलने लगा। पूरी रात आंगन में बेलन धकेलता रहा। इस तरह उसे जरा भी सर्दी नहीं लगी, उलटे गर्मी लगने लगी और उसका सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया।


सवेरे जब बादशाह की नींद खुली, तो उसने सोचा आफन्ती सर्दी से ठिठुरकर जरूर मर चुका होगा। लेकिन खिड़की खोलकर बाहर देखा, तो हैरान रह गया। आफन्ती आंगन में खुशी से चहलकदमी कर रहा था। बादशाह उसे एक सौ य्वानपाओ देने को हरगिज तैयार नहीं था। इसलिए उसने एक तरकीब खोज निकाली। आफन्ती को अन्दर बुलाकर उसने पूछाः


"यह तो बताओ, कल रात आसमान में चांद निकला था या • नहीं?"


"हां, निकला था," आफन्ती ने जवाब दिया।


"अब मैं समझा!" बादशाह बोला। "तुम जरूर चांदनी सेंकते रहे हो। ऐसी हालत में भला तुम्हें ठण्ड कैसे लग सकती थी? चांद की किरणों की गर्मी में एक कमीज पहनकर रात बिताना कोई मुश्किल काम थोड़ा है। तुम्हारी जगह मैं होता, तो नंगे बदन ही पूरी रात बिता देता!" यह कहकर उसने आफन्ती को वहां से जाने का आदेश दे दिया।


कुछ महीने बीतने पर गर्मी का मौसम आ गया। एक दिन बादशाह और उसके मंत्री शिकार खेलने बाहर गए। गोबी रेगिस्तान में सूरज अंगारे बरसा रहा था। प्यास से तड़पते हुए वे लोग पानी पीने आफन्ती के घर जा पहुंचे।


आफन्ती एक कुएं के पास बैठा था। उसे देखते ही बादशाह जोर से बोला:


"यहां कहीं ठंडा पानी है? मुझे फौरन ठंडा पानी चाहिए।"


"हां बादशाह सलामत, यहां ठंडा पानी है," आफन्ती बोला।


"कहां है?" बादशाह ने नजदीक आकर पूछा।


"इस कुएं में है," आफन्ती ने बादशाह को कुएं का पानी दिखाते हुए कहा।


"उसे कुएं से बाहर क्यों नहीं निकालते? सिर्फ पानी देखकर प्यास कैसे बुझाई जा सकती है?" बादशाह तैश में आकर बोला।


"जहांपनाह!" आफन्ती ने झट उत्तर दिया, "जब चांदनी सेंककर ठण्ड दूर की जा सकती है, तो भला पानी देखकर प्यास क्यों नहीं बुझाई जा सकती?"

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