एक टांग वाला कलहंस

 एक टांग वाला कलहंस


एक बार आफन्ती को एक कलहंस मिला। वह उसे बादशाह को भेंट करने चल पड़ा। रास्ते में उसे भूख लगी। सड़क के किनारे बैठकर उसने कलहंस की एक टांग स्वयं खा ली।


महल में पहुंचकर उसने बाकी कलहंस को बड़े अदब के साथ बादशाह को भेंट कर दिया। बादशाह ने कलहंस को उलट-पलट कर गौर से देखने के बाद उससे पूछाः


"आफन्ती, तुम्हारे कलहंस की केवल एक ही टांग क्यों है?" आफन्ती ने यह नहीं सोचा था कि बादशाह भेंट की गई चीज को इतने गौर से देखेगा। कुछ समय तक उसे कोई उत्तर नहीं सूझा। संयोग से उसने देखा, महल के अहाते में सभी कलहंस अपनी एक टांग मोड़कर केवल एक टांग पर खड़े हैं। आफन्ती को बादशाह के सवाल का जवाब मिल गया। कलहंसों की ओर इशारा करता हुआ वह बोलाः


"जहांपनाह, कुदरत ने कलहंस को केवल एक टांग दी है, दो नहीं। आप जरा अपने महल के अहाते में खड़े कलहंसों पर तो नजर डालिए।"


बादशाह ने कलहंसों को देखते ही अंगरक्षकों को हुक्म दिया कि वे डण्डे से उन्हें भगा दें। बेचारे कलहंस डण्डे की मार से बचने के लिए दोनों टांगों पर चलते हुए तितर-बितर हो गए। बादशाह ने चुटकी लीः


"आफन्ती, क्या इनमें एक भी कलहंस ऐसा है जिसकी सिर्फ एक टांग हो?"


"आप सही फरमा रहे हैं, जहांपनाह!" आफन्ती ने तनिक भी विचलित हुए बिना उत्तर दिया। "कलहंसों की बात तो दूर रही, इतना बड़ा डण्डा उठाकर अगर कोई आपके पीछे दौड़ता, तो शायद आपकी दो टांगें भी चार टांगों में बदल जाती और आप सिर पर पांव रखकर भाग खड़े होते!"

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