उल्लू की बोली हिंदी कहानी

 धन और न्याय


एक दिन बादशाह ने आफन्ती से पूछाः "आफन्ती, अगर तुम्हें धन और न्याय में से किसी एक चीज को चुनना पड़े, तो तुम किसे चुनोगे?"


"धन को चुनूंगा।"


"आखिर क्यों?" बादशाह बोला। "अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो जरूर न्याय को चुनता, धन को नहीं। धन तो आसानी से प्राप्त हो सकता हैं, पर न्याय मुश्किल से मिलता है।""आदमी उसी चीज को पाने की इच्छा रखता है जहांपनाह जिसका उसके पास अभाव हो!" आफन्ती ने तुरंत उत्तर दिया।


उल्लू की बोली


आफन्ती अक्सर कहता रहता था कि वह पक्षियों की बोलियां समझ सकता है। यह बात बादशाह के कानों में पड़ी तो उसने आफन्ती को अपने साथ शिकार खेलने बुला लिया।


चलते-चलते वे एक ऐसी गुफा के सामने जा पहुंचे, जो बुरी तरह डह चुकी थी। उसके खण्डहरों पर एक उल्लू बैठा हुआ था। उल्लू की आवाज सुनकर बादशाह ने पूछाः "आफन्ती! यह उल्लू क्या कह रहा है?"


"जहांपनाह, यह कह रहा है कि अगर आपने रिआया पर जुल्म ढाना बन्द न किया तो वह दिन दूर नहीं जब आपकी सल्तनत भी इस गुफा की ही तरह खण्डहर बन जाएगी।"


बहिश्त बनाम दोजख


एक दिन बादशाह और आफन्ती गपशप कर रहे थे। बादशाह ने पूछा:


"तुम क्या सोचते हो, आफन्ती? मरने के बाद मेरी रूह बहिश्त में जाएगी या दोजख में?""आपकी रूह जरूर दोजख में जाएगी। इसका मैं पहले से ही अनुमान लगा चुका हूं।" आफन्ती ने उत्तर दिया।


यह सुनकर बादशाह का मुंह क्रोध से तमतमा उठा और उसने आफन्ती को खूब फटकार लगाई।


"गुस्सा न कीजिए, हुजूर। पहले मेरी बात तो समझ लीजिए!" आफन्ती बोला। "चूंकि आपने बड़ी तादाद में उन लोगों की हत्या की है जिनकी रूह बहिश्त जाने लायक थी, इसलिए इस समय सारा बहिश्त उन लोगों से खचाखच भरा हुआ है और आपके लिए वहां कोई जगह नहीं रह गई है।"

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