आफनती और कंजूस सेठ हिंदी कहानी
आफनती और कंजूस सेठ हिंदी कहानी
जब आफन्ती छोटा था, तो वह गांव के एक सेठ का आंगन बुहारा करता था। सेठ उसे साल के अन्त में तनख्वाह देता था और अक्सर तनख्वाह न देने का बहाना ढूंढता रहता था। एक बार जब साल का अन्तिम दिन आ गया तो सेठ ने सुबह-सवेरे ही आफन्ती को बुला भेजा और बोला:
"नसरूद्दीन, आज तुम आंगन बुहारते समय एक भी बूंद पानी नहीं छिड़कोगे। पर बुहारने के बाद आंगन गीला-सा लगना चाहिए। अगर तुम ऐसा न कर पाए, तो तुम्हारी इस साल की पूरी तनख्वाह कट जाएगी और अगले साल तुम्हें मेरे यहां काम नहीं मिलेगा।" यह कहकर सेठ नए साल के लिए कुछ जरूरी चीजें खरीदने शहर चला गया।
आफन्ती ने चुपचाप सेठ का आंगन बुहार डाला और फिर गोदाम से तेल की सभी तुम्बियां बाहर निकालकर सारा तेल आंगन में छिड़क दिया। जब यह काम पूरा हो गया, तो वह जीने पर बैठकर तनख्वाह के लिए सेठ की बाट जोहने लगा।
शाम को सेठ शहर से वापस लौटा। जब उसने देखा कि आफन्ती ने उसका सारा तेल आंगन में छिड़क दिया है, तो वह बौखलाकर चिल्लायाः
"अरे ओ उल्लू की औलाद! मेरा सारा तेल आंगन में क्यों फैला दिया? तुझे इसका मुआवजा देना होगा!"
"गुस्सा क्यों दिखा रहे हैं, सेठ जी?" आफन्ती खड़ा होकर बोला, "क्या मैंने आपके आंगन में एक भी बूंद पानी छिड़का
है? क्या आपका आंगन गीला-सा नहीं लग रहा है? क्या मैंने आपके आदेश के अनुसार काम नहीं किया है? इस साल की तनख्वाह फौरन मेरे हवाले कर दीजिए। अगले साल हजार मिन्नत खुशामद करने पर भी मैं आपके पास हरगिज काम नहीं करूंगा!"
सेठ अवाक रह गया। आफन्ती को पूरी तनख्वाह देने के सिवाय उसके सामने और कोई चारा नहीं था।
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