अक्लमंदों" का सवाल कहानी

 अक्लमंदों" का सवाल


एक बार कई "अक्लमंद" आदमी एक "अत्यन्त जटिल" सवाल पर बहस कर रहे थेः "अगर नदी में आग लग गई, तो मछलियां कहां जाएंगी?"


लगातार पांच दिन बहस करते रहे पर किसी नतीजे पर नहीं


पहुंच पाए। अन्त में उन्होंने इस सवाल का उत्तर जानने के लिए


सबसे ज्यादा "अक्लमंद" आदमी को आफन्ती के पास भेजा।


आफन्ती ने सवाल सुनते ही फौरन जवाब दियाः "अरे यार, तुम इस मामूली से सवाल के बारे में इतने परेशान क्यों हो? अगर नदी में आग लग ही गई, तो क्या मछलियां पेड़ पर नहीं चढ़ जाएंगी?"

दांवपेंचों की थैली


आफन्ती की ख्याति देश-विदेश में फैल चुकी थी। पड़ोसी मुल्क के बादशाह को पता चला तो उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने मंत्रियों को बुलाकर कहा:


"सुना है कि हमारे पड़ोसी मुल्क में आफन्ती नाम का एक शख्स अपने बादशाह को हमेशा उल्लू बनाता रहता है। क्या यह सच है?"


"हां बादशाह सलामत, यह सच है," मंत्रियों ने जवाब दिया। "हमने सुना है, आफन्ती बड़ा अक्लमंद और आलिम-फाजिल है। उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।"


"यह कैसे हो सकता है।" बादशाह बोला। "एक मामूली आदमी आखिर इतना चतुर कैसे हो सकता है कि वह बादशाह को भी मात कर दे!"


"आप सही फरमा रहे हैं. हुजूर। हमें भी यकीन नहीं है।" मंत्री एक स्वर से बोले।


अन्त में बादशाह ने आफन्ती को शिकस्त देने के लिए खुद पड़ोसी मुल्क में जाने का फैसला किया, ताकि वह साबित कर सके कि बादशाह एक मामूली आदमी से कहीं ज्यादा अक्लमंद होता है।


आफन्ती के मुल्क में पहुंचकर बादशाह ने देखा, एक आदमी खेत में काम कर रहा है। बादशाह ने पूछाः


"सुना है तुम्हारे मुल्क में आफन्ती नाम का एक आदमी है। मैं उससे मिलना चाहता हूं और देखना चाहता हूं कि वह आखिर कितना अक्लमंद है।"


यह सुनते ही आफन्ती ने उसके मन की बात भांप ली और बोला:


"मैं ही आफन्ती हूं। कहिए मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूं?"


"ओह, तो तुम ही आफन्ती हो!" बादशाह कटाक्ष करता हुआ बोला: "मैंने सुना है तुम बड़े धोखेबाज हो। पर मैं तुम्हारे धोखे में हरगिज नहीं आऊंगा! क्या तुम मुझे झांसा दे सकते हो?"


"जरूर, मैं आपको जरूर झांसा दे सकता हूं।" आफन्ती ने उत्तर दिया। "मगर ठहरिए आपको कुछ देर इन्तजार करना होगा। मैं जरा घर जाकर अपनी दांवपेंचों की थैली तो उठा लाऊं। तब आपको झांसा दे सकूंगा। अगर आप मेरे दांवपेंचों से नहीं डरते, तो कृप्या थोड़ी देर के लिए मुझे अपना घोड़ा दे दीजिए, ताकि मैं जल्दी वापस लौट सकूं।"


"ठीक है, ले आओ अपनी दांवपेंचों की थैली! ऐसी दस थैलियां भी मेरे सामने बेकार साबित होंगी। "यह कहता हुआ बादशाह घोड़े से नीचे उतर गया और उसने अपने घोड़े की लगाम आफन्ती को थमा दी। "जल्दी जाओ। फौरन लौट आना, मैं तुम्हारे हर दांवपेंच को नाकाम कर दूंगा।"


आफन्ती उछलकर घोड़े पर सवार हो गया और पलभर में


बादशाह की नजरों से ओझल हो गया। बादशाह उसकी बाट जोहता रहा। इन्तजार करते-करते घण्टों बीत गए। जब सूरज पश्चिमी पहाड़ियों में डूब गया तब भी आफन्ती के लौटने के आसार नजर नहीं आए। अन्त में बादशाह समझ गया कि वह आफन्ती के झांसे में आ गया है। रात के अंधेरे में वह अपना सा मुंह लेकर चुपचाप स्वदेश लौट गया।

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