सबसे बड़ा भुक्कड़ आफनती के किस्से
अन्धा अफसर
आफन्ती का एक दोस्त था। बचपन में दोनों लंगोटिए यार थे। बाद में वह दोस्त राजधानी में एक बड़ा अफसर बन गया। यह जानकर आफन्ती बड़ा खुश हुआ और उससे मिलने अपने दूर-दराज गांव से राजधानी जा पहुंचा।
पर दोस्त को डर था कि एक गरीब किसान का दोस्त कहलाने से कहीं उसकी इज्जत धूल में न मिल जाए। इसलिए उसने आफन्ती से एक अजनबी का सा सलूक करते हुए पूछाः
"तुम्हारा नाम क्या है? मुझसे क्यों मिलने आए हो?"
यह सुनकर आफन्ती को बड़ा गुस्सा आया। उसने तुरन्त उत्तर दिया:
"मैं नसरूद्दीन आफन्ती हूं। तुम्हारा बचपन का पक्का दोस्त। मैंने सुना है, तुम्हारी आंखें खराब हो चुकी हैं इसलिए तुम्हारी देखभाल करने आया हूं। कौन जानता था कि तुम अफसर बनने के बाद अन्धे हो जाओगे!"
सबसे बड़ा भुक्कड़
एक सेठ आफन्ती की खिल्ली उड़ाना चाहता था। उसने बहुत से तरबूज खरीद लिये और आफन्ती व दूसरे दोस्तों को तरबूज खाने का न्यौता दिया। वह एक तरफ तो लोगों से बार-बार तरबूज खाने का अनुरोध करता जा रहा था, लेकिन दूसरी तरफ अपने खाए तरबूजों के छिलके चुपके से आफन्ती के सामने रखता जा रहा था। जब सब तरबूज खत्म हो गए, तो सेठ ताज्जुब का दिखावा करता हुआ चिल्लायाः
"दोस्तो, जरा देखो तो! आफन्ती के सामने छिलकों का कितना बड़ा ढेर लग गया है। हममें सबसे ज्यादा तरबूज इसी ने खाए हैं।
"हा-हा-हा!" सब लोग ठहाका मारकर हंस पड़े।
"दोस्तो, तुम लोग मुझ पर व्यर्थ ही हंस रहे हो। तुम नहीं जानते कि सबसे बड़ा भुक्कड़ कौन है?" आफन्ती हंसता हुआ बोला, "जब मैं तरबूज खाता हूं, तो छिलके जरूर फेंक देता हूं। पर सेठ जी तो तरबूज के छिलके भी निगल गए हैं। उनके सामने एक भी छिलका मौजूद नहीं है!"
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