कलहंस का बंटवारा कहानी

 कलहंस का बंटवारा कहानी 

कलहंस का बंटवारा कहानी


एक बार काजी एक पका पकाया कलहंस बादशाह को भेंट करने आया। उसने कहा:


"बादशाह सलामत, आज आपका जन्मदिन है। मैं जानता हूं


कि आपको कलहंस का मांस सबसे ज्यादा पसन्द है। इसलिए यह कलहंस खुद पकाकर आपको और आपके परिवार के लोगों को खिलाने लाया हूं।"


बादशाह की दो शहजादियां कलहंस की टांगें और उसके दो शहजादे कलहंस का सीना खाने के लिए मचलने लगे। बादशाह और बेगम को कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने राजमहल के सेवक आफन्ती को बुलाया और कलहंस का बंटवारा करने को कहा।


आफन्ती ने चाकू से कलहंस का सिर काटकर बड़े अदब के साथ बादशाह को देते हुए कहा:


"जहांपनाह, आप हमारे मुल्क के सरताज हैं। आपको सिर खाना चाहिए। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप हमेशा हमारे मुल्क के सरताज बने रहें।" इसके बाद उसने कलहंस की गर्दन काटकर बेगम को पेश की और बोला:


"कहावत है, अगर शौहर की उपमा सिर से दी जाए, तो बेगम की उपमा गर्दन से दी जानी चाहिए। इसलिए आपको यह गर्दन दे रहा हूं। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप बादशाह सलामत से कभी न बिछुड़ें।"


फिर उसने कलहंस का एक-एक डैना दोनों शहजादियों को दे दिया और कहा:


"मेरी दिली ख्वाहिश है कि तुम्हारी शादी किसी अच्छी जगह हो जाए। यह डैना खाकर तुम अपने-अपने शौहरों के साथ दूर तक जा सकोगी।"


फिर उसने दोनों शहजादों को कलहंस का एक-एक पंजा दे दिया और कहा:


"तुम लोग बादशाह के ताजोतख्त के वारिस हो। पंजा खाकर तुम गद्दी पर मजबूती से पांव जमा सकोगे।"


अन्त में उसने मुस्कराते हुए अपनी बात जारी रखी:


"अब कलहंस के सीने और टांगों का गोश्त ही बाकी रह


गया है। अगर उसे आप लोग खाएंगे, तो अपशकुन होगा। बेहतर यह होगा कि उसे मैं यानी नसरूद्दीन आफन्ती खाऊं!" यह कहता हुआ वह कलहंस के सीने और टांगों का गोश्त उठाकर राजमहल से बाहर चला गया और ड्योढ़ी में बैठकर मौज से खाने लगा।

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