राक्षस और कंजूस सेठ

 राक्षस और कंजूस सेठ 


एक बार बाजार में एक ठेकेदार ने आफन्ती से पूछाः


"मैंने सुना है तुम अक्सर राक्षसों के सम्पर्क में रहते हो। क्या बता सकते हो कि राक्षस का चेहरा-मोहरा कैसा होता है?"


आफन्ती ने जवाब दियाः


"क्यों नहीं? आईने में अपनी सूरत देखते ही तुम्हें फौरन उसके चेहरे-मोहरे का पता चल जाएगा।"


कंजूस सेठ


एक सेठ बहुत कंजूस था। एक बार उसने आफन्ती को खाने पर बुलाया। सेठ ने अपना कटोरा तो दूध से ऊपर तक भर लिया और आफन्ती को आधे कटोरे से भी कम दूध देकर उससे बार-बार कहता रहा:


"लो भाई, यह दूध पी लो ! तुम्हारी खातिरदारी के लिए मेरे पास कोई अच्छी चीज तो नहीं। कटोरा भर दूध जरूर पी लो।"


"सेठ जी, जरा एक आरी तो दीजिए," आफन्ती ने कहा।


सेठ आफन्ती की बात बिल्कुल नहीं समझ पाया और बोला "तुम्हें आरी क्यों चाहिए?"


"बात यह है," आफन्ती ने अपने सामने पड़े कटोरे की ओर इशारा करते हुए कहा, "इस कटोरे का ऊपर का हिस्सा बिल्कुल फालतू है। इसीलिए बेहतर यह होगा कि पहले मैं आरी से इस फालतू हिस्से को काट दूं!"

Hindi kahani 

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