बादशाह का जामा

 बादशाह का जामा


एक बार बादशाह ने एक शानदार दावत दी। दावत में सभी अमीर-उमराव, हाकिम हुक्मरान निमंत्रित थे। इस अवसर पर बादशाह ने आफन्ती को भी निमंत्रण दिया था। दावत के बाद बादशाह ने हर मेहमान को एक बढ़िया पोशाक भेंट की। लेकिन आफन्ती का अपमान करने के लिए उसे गधे की पीठ पर रखा जाने वाला सन का जामा थमा दिया। आफन्ती ने बड़े अदब के -साथ बादशाह के हाथ से यह जामा ले लिया और अनेक बार झुककर शुक्रिया अदा किया। इसके बाद वह बुलन्द आवाज में बोला:


"माननीय मेहमानो, बादशाह सलामत ने आप लोगों को रेशम-साटन के कपड़े भेंट किए हैं। पर ये सब बाजार में मिल सकते हैं। जरा गौर फरमाइए, बादशाह सलामत मेरी कितनी इज्जत करते हैं। उन्होंने मुझे अपना खुद का जामा भेंट कर दिया है।"

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