खाली बर्तन मजेदार कहानी
खाली बर्तन मजेदार कहानी
एक बार बादशाह और प्रधान मंत्री शिकार खेलने गए। जब लौट रहे थे, तो गरमी के मारे उन्हें बेहद प्यास लग गई। दोनों आफन्ती के घर के दरवाजे पर रूक गए। प्रधान मंत्री ने जोर से पुकाराः
"अरे, कोई घर के अन्दर है क्या? जल्दी से दही की लस्सी ले आओ। उसमें कुछ भी डाल देना। हमें बेहद प्यास लग रही है।" यह कहते समय उसने घोड़े से नीचे उतरने का शिष्टाचार भी नहीं दिखाया।
आफन्ती खाली हाथ आहिस्ता आहिस्ता घर से बाहर निकला। पहले उसने बादशाह को सलाम किया और फिर बड़े अदब से बोला:
"माफ कीजिए। मैं सुबह से ही खेत में काम कर रहा था। अभी-अभी लौटा हूं। बेहद प्यास लगी थी, इसलिए सारा दही लस्सी बनाकर पी गया। अब घर में थोड़ा भी दही नहीं है।"
निराश होकर बादशाह और प्रधान मंत्री को अपनी राह लेनी पड़ी। लेकिन जब वे काफी दूर चले गए, तो आफन्ती हाथ में दही का बर्तन लिये मकान के छज्जे पर खड़ा होकर बुलन्द आवाज में पुकारने लगाः
"बादशाह सलामत, वापस आ जाइए!"
बादशाह और प्रधान मंत्री ने दूर से दही का बर्तन देखा, तो बहुत खुश हुए। घोड़ों को वापस मोड़कर वे फौरन आफन्ती के पास जा पहुंचे। जब वे बिल्कुल करीब पहुंच गए, तो आफन्ती ने दही का बर्तन उनके सामने पलट दिया और बोला:
• "बड़े अफसोस की बात है। आप खुद देख लीजिए, क्या यह बर्तन सचमुच खाली नहीं है?"
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