पियासी जेब और आलसी को सबक
प्यासी जेब
एक बार आफन्ती अपने एक दोस्त के घर दावत में गया। मेहमानों की खातिरदारी के लिए मेजबान ने बकरी का भुना हुआ गोश्त, सिवैयां, नान और तरह-तरह के मेवा मिष्ठान तैयार किए थे। आफन्ती की बगल में बैठा एक मेहमान न सिर्फ ज्यादा से ज्यादा भोजन चट करता जा रहा था. बल्कि बहुत से पकवान उठा-उठाकर अपनी जेब में भरता जा रहा था। यह देखकर आफन्ती ने एक चायदानी उठा ली और उसकी जेब में चाय उड़ेलने लगा।
"यह क्या बदतमीजी है, आफन्ती?" वह आदमी बौखलाकर बोला।
"चिल्लाओ मत," आफन्ती ने सबके सामने ऊंची आवाज में कहा, "तुम्हारी जेब बहुत सी चीजें खा चुकी है। उसे प्यास लग रही होगी। इसलिए चाय पिला रहा हूं।"
आलसी को सबक
गांव में एक आलसी आदमी रहता था। एक दिन उसने आफन्ती से कहा:
"आफन्ती, कल मैं तुम्हारे घर खाना खाने आऊंगा। भाभी से कहकर कुछ अच्छे-अच्छे पकवान बनवा देना।"
"बहुत अच्छा," आफन्ती ने उत्तर दिया।
दूसरे दिन वह आदमी सुबह-सवेरे ही आफन्ती के घर जा पहुंचा और बुलन्द आवाज में बोला:
"आफन्ती, कुछ पानी तो ले आओ। खाना खाने से पहले जरा हाथ धो लें।"
आफन्ती उसके लिए पानी ले आया। पानी उसके हाथ पर डालता हुआ वह बोलाः
"माफ करना भाई, आज मैं तुम्हें खाना नहीं खिला पाऊंगा।"
"क्यों, क्या बात है?"
"बाकी सब सामान तो तैयार है, पर एक चीज की कमी रह गई है. एक छोटी सी चीज की!"
"वह कौन सी चीज है?"
आफन्ती आलसी आदमी के कान के पास जा पहुंचा और धीरे से फुसफुसायाः
"काम करने वाले दो हाथों की!"
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