बुद्धि की परिचय आफनती के किस्से

 बुद्धि की परिचय आफनती के किस्से 


गांव में एक नया काजी आया। किसी ने आफन्ती के सामने उसकी तारीफ के पुल बांधते हुए कहाः "सुना तुमने? नए काजी को पूरे का पूरा कुरान शरीफ जबानी याद है। उसके मस्तिष्क में बुद्धि कूट-कूटकर भरी हुई है।"


"हां, यह सम्भव है." आफन्ती ने कहा। "चूंकि काजी को अपनी बुद्धि इस्तेमाल ही नहीं करनी पड़ती, इसलिए उसके मस्तिष्क में बुद्धि कूट-कूटकर भरी होना स्वाभाविक है।"

अमुक दिन आइए


आफन्ती ने एक छोटी-सी रंगाई वर्कशाप खोली और गांव- वासियों के लिए कपड़ा रंगना शुरू कर दिया। सब लोग उसकी रंगाई की तारीफ करने लगे। यह सुनकर एक सेठ को बहुत जलन महसूस होने लगी और वह आफन्ती को परेशान करने के इरादे से कपड़े का एक टुकड़ा लेकर आफन्ती की वर्कशाप में जा पहुंचा। दरवाजे के अन्दर घुसते ही सेठ बुलन्द आवाज में बोला:


"आफन्ती, जरा यह कपड़ा तो अच्छी तरह रंग दो। मैं देखना चाहता हूं तुम्हारा हुनर कैसा है।"


"सेठ जी, आप कैसा रंग चाहते हैं?"


"रंग? रंग के बारे में मेरी कोई खास पसन्द तो नहीं है. पर मुझे सफेद, लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी रंग कतई अच्छा नहीं लगता। समझे कि नहीं?"


"समझ गया हूं, अच्छी तरह समझ गया हूं। मैं जरूर आपकी पसन्द की रंगाई कर दूंगा!" आफन्ती ने सेठ का मंसूबा भांपते हुए उसके हाथ से कपड़े का टुकड़ा ले लिया।


"अच्छा, तो इसे लेने किस दिन आऊं?" सेठ ने खुश होकर कहा।


आफन्ती ने कपड़े को अलमारी में बन्द करके उसमें ताला लगा दिया और सेठ से बोला, "आप इसे लेने सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को छोड़कर किसी भी दिन आ सकते हैं!"

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