बच्चा जनने वाली देगची हिंदी कहानी

 मजिस्ट्रेट और कुत्ता

बच्चा जनने वाली देगची


एक बार काउन्टी-मजिस्ट्रेट ने आफन्ती को आदेश दिया कि वह एक ऐसा खूंखार कुत्ता ढूंढ लाए जो लोगों को काटता हो और उन पर झपटता हो। कुछ दिन बाद, आफन्ती एक ऐसा कुत्ता ले आया, जो दुम दबाकर बैठा रहता था और अजनबी के सामने भी नहीं भौंकता था। यह देखकर मजिस्ट्रेट उस पर बरस पड़ाः


"आफन्ती, तुम्हारे कान नहीं हैं क्या? मैंने तुमसे किस किस्म का कुत्ता ढूंढने को कहा था? क्या तुमने सुना नहीं?"


"हां जनाब, मैंने अच्छी तरह सुन लिया था। कुत्ता चाहे किसी किस्म का हो, आपके यहां आकर वैसा ही बन जाएगा!" आफन्ती ने तपाक से उत्तर दिया। "यह कुत्ता भी कुछ ही दिनों में आपसे सब तरह के हुनर सीख लेगा। लोगों को काटने या उन पर झपटने का ही नहीं, उनके बटुवे खोलकर पैसे निकालने का तरीका भी जल्दी सीख जायेगा!"


बच्चा जनने वाली देगची


एक बार आफन्ती ने एक सेठ से देगची उधार ली। कुछ दिन बाद वह उस देगची के अन्दर एक छोटी देगची रखकर सेठ को वापस देने जा पहुंचा। यह देखकर सेठ खुश भी हुआ और हैरान भी। उसने पूछाः


"आफन्ती भैया, यह छोटी देगची क्यों ले आए?"


"सेठ जी." आफन्ती ने उत्तर दिया, "आपसे मैंने जो देगची उधार ली थी, वह गर्भवती थी। मेरे घर आने के दो दिन बाद ही उसने इस छोटी देगची को जन्म दे दिया। अब मैं दोनों देगचियां आपको लौटाने आया हूं।"


"अच्छा, तो यह बात है। अगर तुम्हें फिर जरूरत पड़े, तो बिना हिचकिचाहट के फिर ले जाना।" यह कहकर सेठ ने खुशी-खुशी दोनों देगचियां रख लीं।


दो दिन बाद आफन्ती फिर सेठ के घर जा पहुंचा। उसने


बताया कि उसके घर बहुत से मेहमान आए हुए हैं और एक बड़ी देगची की जरूरत है। सेठ को पूरी उम्मीद थी कि आफन्ती फिर देगची उधार लेने आएगा। इसलिए उसने फौरन अपनी सबसे बड़ी देगची निकालकर दे दी।


एक हफ्ता बीत गया, दो हफ्ते बीत गए, एक महीना होने को आया। पर आफन्ती की छाया तक नहीं दिखाई दी। अपनी देगची वापस लेने के लिए सेठ बेचैन हो उठा। तभी आफन्ती गधे पर सवार हो सेठ के घर जा पहुंचा। उसके चेहरे पर विषाद था।


"हाय," आफन्ती ने एक ठण्डी सांस ली। "सेठ जी, बड़ी बुरी खबर है। मेरे घर जाने के दो दिन बाद ही आपकी देगची मर गई। मैंने सोचा था, उसके मरने के चालीस दिन बाद आपको सूचित करूंगा। पर यह सोचकर कि आप कहीं परेशान न हो जाएं, समय से कुछ दिन पहले ही बताने आ गया हूं।"


"कैसी ऊलजलूल बातें बक रहे हो।" सेठ तैश में आकर बोला। "तुम मुझे उल्लू बनाना चाहते हो? भला लोहे की देगची भी कहीं मर सकती है?"


"वाह सेठ जी, आप भी खूब हैं।" आफन्ती बोला। "आपने यह तो मान लिया कि लोहे की देगची बच्चा जन सकती है और उसके बच्चे को स्वीकार भी कर लिया, पर यह मानने को तैयार नहीं हैं कि लोहे की देगची मर भी सकती है!"


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