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जहर का कटोरा आफनती की कहानी

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जहर का कटोरा आफनती की कहानी  उन दिनों आफन्ती एक काजी के घर नौकरी करता था। एक दिन एक सेठ ने काजी को एक कटोरा शहद भेंट किया। काजी ने अभी-अभी खाना खाया था और उसे किसी जरूरी काम से बाहर जाना था। उसने आफन्ती को बुलाकर हुक्म दियाः "आफन्ती, मैं बाहर जा रहा हूं। इस कटोरे में जहर है, जिसे अभी-अभी सेठ जी दे गए हैं। इसे सम्भालकर रख देना।" यह कहने के बाद काजी घोड़े पर सवार हो गया और बाहर चला गया। काजी के बाहर जाते ही आफन्ती ने एक नान निकाला और उसे शहद में डुबाकर बड़े इत्मीनान से खाने लगा। कुछ ही क्षणों में वह सारा शहद चट कर गया। इसके बाद उसने काजी के घर के सारे बर्तन-भांडे तोड़ डाले। काजी घर लौटा, तो देखा शहद का कटोरा खाली पड़ा है। उसने पूछा: "कटोरे का जहर कहां है, आफन्ती?" आफन्ती ने बड़ी नाटकीयता के साथ कांपती जबान में जवाब दियाः "मालिक, मुझसे आज एक भारी गलती हो गई है। मेरी लापरवाही से आपके घर के सारे बर्तन-भांडे टूट गए हैं। मैंने सोचा, आप मुझे जरूर फटकार लगाएंगे और मुझसे मुआवजा मांगेंगे। मैं एक गरीब आदमी हूं। इतना मुआवजा देना मेरे बूते के बाहर है। इसलिए मैंने आत्महत्या क

उड़ने वाला घोड़ा देसी कहानियाँ

 बादशाह का चेहरा जब आफन्ती बादशाह का अंगरक्षक था, तो एक दिन बादशाह ने भौंहें सिकोड़कर उससे कहाः "कल मैंने आईने में अपनी सूरत देखी तो पता चला कि मैं वाकई बेहद बदसूरत हूं। अब मैंने फैसला कर लिया है कि आयन्दा अपना चेहरा आईने में कभी नहीं देखूंगा!" "जहांपनाहः" आफन्ती तुरन्त बोला, "आप अपनी सूरत सिर्फ एक बार देखकर ही उससे घृणा करने लगे हैं। लेकिन मुझे रोजाना कम से कम दस-बीस बार आपकी सूरत देखनी पड़ती है। आप सोच भी नहीं सकते कि मेरा क्या हाल होता है!" उड़ने वाला घोड़ा देसी कहानियाँ बादशाह ने आफन्ती से पूछाः "आफन्ती, बहुत दिनों से मेरी इच्छा है कि आकाश में उड़कर पूरी दुनिया की सैर करूं। मैं दुनिया के पहाड़ों, नदियों, शहरों, गांवों, जंगलों और मैदानों को देखकर अपना ज्ञान बढ़ाना चाहता हूं। यह इच्छा पूरी करने के लिए कोई अच्छी तरकीब बता सकते हो?" "जरूर बता सकता हूं. जहांपनाह!" आफन्ती बुलन्द आवाज में बोला। यह सुनकर बादशाह की बांछें खिल गई और वह बोला: "तुम सचमुच बड़े अकलमंद आदमी हो! बताओ, वह कौन-सी तरकीब है?" "आकाश में पहुंचना कोई मुश्कि

मूर्ख बादशाह और आफनती

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 दुआ बनाम बददुआ उन दिनों आफन्ती एक मोची का काम करता था। एक मौलवी उसके पास आया और बोला: "आफन्ती भाई, मेरे जूते का तल्ला उखड़ गया है। जरा इसकी मरम्मत तो कर दो। मैं खुदा से तुम्हारे लिए दुआ मांगूंगा।" "माफ कीजिए, मौलवी साहब, मेरे पास फुरसत नहीं है।" आफन्ती सिर उठाए बिना काम जारी रखता हुआ बोला। "आप अपना जूता किसी दूसरे मोची से ठीक क्यों नहीं करवा लेते।" "यह कैसे हो सकता है?" मौलवी ने कड़ी आवाज में कहा। "मेरा काम तुम्हें अभी करना होगा। वरना मैं खुदा से तुम्हारे लिए बददुआ मांगूंगा। तब तुम्हें पछताना पड़ेगा।" "वाह!" आफन्ती हाथ का काम रोककर बोला, "अगर आपकी दुआ वाकई इतनी कारगर है, तो आपने खुदा से यह दुआ क्यों नहीं मांगी कि आपका जूता कभी न टूटे?" मूर्ख बादशाह और आफनती  नया बादशाह निरा मूर्ख और अनाड़ी था। विदेशी राजदूतों के साथ भेंट के समय भी ऊलजलूल बातें कर बैठता था। सुनकर लोग अक्सर ठहाके मारने लगते थे। इससे देश की साख धूल में मिलती जा रही थी। मंत्रियों की सिफारिश पर बादशाह ने अक्लमंद आफन्ती को अपना सलाहकार बना लिया। आफन्ती ने

पहलवान की ताकत

 पहलवान की ताकत एक बार एक तथाकथित पहलवान आफन्ती के घर गया और बोला: "आफन्ती, तुम अक्ल में बड़े हो और मैं ताकत में। अगर हम दोनों दोस्त बन जाएं, तो कैसा रहेगा?" आफन्ती ने आगन्तुक को गौर से देखा और उससे पूछाः "पर यह तो बताओ, तुम्हारे अन्दर कितनी ताकत है?" "मैं 500 किलोग्राम वजन वाली चट्टान को सिर्फ एक हाथ से आसानी से उठा सकता हूं और उसे नगर की चारदीवारी के बाहर फेंक सकता हूं." पहलवान डींग मारता हुआ बोला। "ज्यादा शेखी न बघारो," आफन्ती ने उसकी ओर घूरते हुए कहा। "पहले मैं तुम्हारी परीक्षा लेता हूं।" यह कहकर वह पहलवान को आंगन में ले गया। "ठीक है," पहलवान अकड़कर बोला, "मैं हर परीक्षा में खरा उतरूंगा।" "अरे यार, ज्यादा डींग न मारो। जरा विनम्र रहो!" यह कहते हुए आफन्ती ने अपनी जेब से एक रेशमी रूमाल निकाला और उसके हाथ में थमाते हुए कहा, "इसका वजन दस ग्राम से भी कम है। जरा इसे आंगन की दीवार के बाहर फेंक कर तो दिखाओ।" "यह भी कोई बड़ी बात है?" पहलवान मुस्कराता हुआ बोला, "आफन्ती, क्या तुम मुझे इतना

कलहंस का बंटवारा कहानी

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 कलहंस का बंटवारा कहानी  एक बार काजी एक पका पकाया कलहंस बादशाह को भेंट करने आया। उसने कहा: "बादशाह सलामत, आज आपका जन्मदिन है। मैं जानता हूं कि आपको कलहंस का मांस सबसे ज्यादा पसन्द है। इसलिए यह कलहंस खुद पकाकर आपको और आपके परिवार के लोगों को खिलाने लाया हूं।" बादशाह की दो शहजादियां कलहंस की टांगें और उसके दो शहजादे कलहंस का सीना खाने के लिए मचलने लगे। बादशाह और बेगम को कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने राजमहल के सेवक आफन्ती को बुलाया और कलहंस का बंटवारा करने को कहा। आफन्ती ने चाकू से कलहंस का सिर काटकर बड़े अदब के साथ बादशाह को देते हुए कहा: "जहांपनाह, आप हमारे मुल्क के सरताज हैं। आपको सिर खाना चाहिए। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप हमेशा हमारे मुल्क के सरताज बने रहें।" इसके बाद उसने कलहंस की गर्दन काटकर बेगम को पेश की और बोला: "कहावत है, अगर शौहर की उपमा सिर से दी जाए, तो बेगम की उपमा गर्दन से दी जानी चाहिए। इसलिए आपको यह गर्दन दे रहा हूं। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप बादशाह सलामत से कभी न बिछुड़ें।" फिर उसने कलहंस का एक-एक डैना दोनों शहजादियों को दे दिया और कहा: &q

सूझबूझ वाला सेवक आफनती के किस्से

 सूझबूझ वाला सेवक आफनती के किस्से  बादशाह को पता चला कि आफन्ती एक होशियार, फुर्तीला और सूझबूझ वाला आदमी है। इसलिए उसे राजमहल में सेवक नियुक्त कर दिया। बादशाह ने उससे कहाः "आफन्ती, जब कभी तुम्हें कोई काम दिया जाए, तो उससे सम्बन्धित बाकी सब काम तुम्हें एक साथ पूरे कर लेने चाहिए।" शुरू-शुरू में आफन्ती ने बहुत से काम बखूबी पूरे किए। बादशाह बड़ा खुश हुआ। उसने मंत्रियों के सामने आफन्ती की तारीफ के पुल बांध दिए और उनसे कहा कि वे आफन्ती की मिसाल पर चलें। एक दिन यकायक बादशाह गम्भीर रूप से बीमार हो गया। वह न तो खाना खा सकता था और न एक भी बूंद पानी पी सकता था। मंत्रियों ने आफन्ती को बुलाया। बादशाह कराहता हुआ बोला: "आफन्ती, जाओ, जल्दी से किसी अच्छे हकीम को बुला लाओ। जरा भी देर न करना।" "आप बिल्कुल बेफिक्र रहें, जहांपनाह!" आफन्ती बोला, "मैं इससे सम्बन्धित सभी काम एक साथ पूरे करके जल्दी ही लौट आऊंगा।" आफन्ती ने राजधानी में जगह-जगह पूछताछ करने के बाद बादशाह का इलाज करने के लिए एक हकीम चुन लिया। फिर मस्जिद में जाकर कुरान शरीफ पढ़ने के लिए एक मौलवी बुला लाया। साथ

खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ

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खिड़की पर सिर देसी कहानियाँ  एक बार आफन्ती के एक कंजूस दोस्त ने भोजन के लिए उसे अपने घर बुलाने का पाखण्ड रचा। आफन्ती निश्चित समय पर उसके घर जा पहुंचा। दोस्त अपने मकान की दूसरी मंजिल की खिड़की से झांक रहा था। आफन्ती को देखते ही वह पत्नी के कान में कुछ फुस- फुसाया। पत्नी फाटक पर जाकर बोली: "क्या आप ही आफन्ती हैं? बच्चों के अब्बा को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा है। आप किसी दूसरे दिन तशरीफ लाइए!" "ठीक है, मैं जाता हूं।" आफन्ती बोला। "मगर एक बात उनसे जरूर कह देना। आइन्दा वे जब कभी बाहर जाएं, अपना सिर खिड़की पर न लटका जाएं।" अनोखा नुस्खा आफन्ती एक अच्छा हकीम भी था। एक बार चर्बी के बोझ से लदा एक सेठ उसके पास आया और खींसें निकालकर बोला: "आफन्ती, मैं अपने मोटापे से बड़ा परेशान हूं। क्या तुम मेरी इस बीमारी का इलाज कर सकते हो?" आफन्ती ने सेठ को ऊपर से नीचे तक बड़े गौर से देखा और नुस्खा लिखकर उसके हाथ में थमा दिया। नुस्खे में लिखा थाः "आप पन्द्रह दिन के अन्दर मर जाएंगे।" यह अनोखा नुस्खा पढ़कर सेठ के पैरों तले की जमीन खिसकने लगी। वह जैसे-तैसे घर